गुरुवार, जनवरी 14, 2021

अम्मा का निजि प्रेम

अम्मा का निजि प्रेम
****************
आटे के ठोस
और तिली के मुलायम लड्डू
मीठी नीम के तड़के से
लाल मिर्च
और शक्कर भुरका नमकीन
हींग,मैथी,राई से बघरा मठा
और नये चांवल की खिचड़ी

खाने तब ही मिलती थी
जब सभी
तिल चुपड़ कर नहाऐं
और अम्मा के भगवान के पास
एक एक मुठ्ठी कच्ची खिचड़ी चढ़ाऐं

पापा ने कहा
मुझे नियमों से बरी रखो
बच्चों के साथ मुझे ना घसीटो 
सीधे पल्ले को सिर पर रखते हुए
अम्मा ने कहा
नियम सबके लिए होते हैं

पापा ने पुरुष होने का परिचय दिया
क्या अब मुझसे प्रेम नहीं करती 
मेरा सम्मान नहीं करती तुम
अम्मा ने तपाक से कहा
मैं करती हूं सम्मान 
पट तुमसे प्रेम नहीं करती

पापा की हथेली से
फिसलकर गिर गया सूरज 
माथे की सिकुड़ी लकीरों को फैलाकर
पूंछा क्यों ?
अम्मा ने
जमीन में पड़े पापा के सूरज को उठाकर
सिंदूर वाली बिंदी में
लपेटते हुए बोला
तुम्हारा और मेरा प्रेम
समाज और घर की चौखट से बंधा है
जो कभी मेरा नहीं रहा

बांधा गया प्रेम तो
कभी भी टूट सकता है
निजि प्रेम कभी नहीं टूटता
मेरा निजि प्रेम मेरे बच्चे हैं

पापा बंधें प्रेम को तोड़कर
वैकुंठधाम चले गये
अम्मा आज भी
अपने निजि प्रेम को जिन्दा रखे
अपनी जमीन पर खड़ी हैं ---

"ज्योति खरे "

22 टिप्‍पणियां:

  1. जी नमस्ते,
    आपकी लिखी रचना शुक्रवार १५ जनवरी २०२१ के लिए साझा की गयी है
    पांच लिंकों का आनंद पर...
    आप भी सादर आमंत्रित हैं।
    सादर
    धन्यवाद।

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  2. सुन्दर प्रस्तुति।
    मकर संक्रान्ति का हार्दिक शुभकामनाएँ।

    जवाब देंहटाएं
  3. पट तुमसे प्रेम नहीं करती ,, पर कर लें। लाजवाब सृजन।

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  4. अम्मा की सच्ची वाणी
    अद्धभुत भावाभिव्यक्ति

    जवाब देंहटाएं
  5. बेहद हृदयस्पर्शी रचना आदरणीय

    जवाब देंहटाएं
  6. वाह ! बहुत ही गहन एवं मर्मस्पर्शी ! अति सुन्दर !

    जवाब देंहटाएं
  7. मर्मस्पर्शी रचना! साधुवाद!--ब्रजेंद्रनाथ

    जवाब देंहटाएं
  8. आदरणीय सर आपकी ये रचना पहले भी पढ़ी है। अम्मा का दुस्साहसी तेवर देखते ही बनता है इस भावपूर्ण काव्य चित्र में। मानिनी नारी की साफगोई को नमन है🙏🙏
    ममता बिना शर्त और निस्वार्थ होती है। दुनियादारी से परे
    कोटि आभार और शुभकामनाएं🙏🙏

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  9. अम्मा का निजि प्रेम
    ****************
    आटे के ठोस
    और तिली के मुलायम लड्डू
    मीठी नीम के तड़के से
    लाल मिर्च
    और शक्कर भुरका नमकीन
    हींग,मैथी,राई से बघरा मठा
    और नये चांवल की खिचड़ी

    खाने तब ही मिलती थी
    जब सभी
    तिल चुपड़ कर नहाऐं
    और अम्मा के भगवान के पास
    एक एक मुठ्ठी कच्ची खिचड़ी चढ़ाऐं

    पापा ने कहा
    मुझे नियमों से बरी रखो
    बच्चों के साथ मुझे ना घसीटो
    सीधे पल्ले को सिर पर रखते हुए
    अम्मा ने कहा
    नियम सबके लिए होते हैं

    पापा ने पुरुष होने का परिचय दिया
    क्या अब मुझसे प्रेम नहीं करती
    मेरा सम्मान नहीं करती तुम
    अम्मा ने तपाक से कहा
    मैं करती हूं सम्मान
    पट तुमसे प्रेम नहीं करती

    पापा की हथेली से
    फिसलकर गिर गया सूरज
    माथे की सिकुड़ी लकीरों को फैलाकर
    पूंछा क्यों ?
    अम्मा ने
    जमीन में पड़े पापा के सूरज को उठाकर
    सिंदूर वाली बिंदी में
    लपेटते हुए बोला
    तुम्हारा और मेरा प्रेम
    समाज और घर की चौखट से बंधा है
    जो कभी मेरा नहीं रहा

    बांधा गया प्रेम तो
    कभी भी टूट सकता है
    निजि प्रेम कभी नहीं टूटता
    मेरा निजि प्रेम मेरे बच्चे हैं

    पापा बंधें प्रेम को तोड़कर
    वैकुंठधाम चले गये
    अम्मा आज भी
    अपने निजि प्रेम को जिन्दा रखे
    अपनी जमीन पर खड़ी हैं ---
    पूरी रचना अद्भुत है, भाव बहुत ही गहरे है,सीधे मन को छू लेते है , नमन

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