सोमवार, मई 28, 2012
गुरुवार, मई 24, 2012
रविवार, मई 20, 2012
फफूंद लगी रोटियां
रोटी की तलाश के बजाय
बमों की तलाश मैं जुटे हैं हम
डरते हैं
रोटियों को
कोई हथिया न ले-----------
भूखे पेट रहकर
एक तहखाना बना रहे हैं हम
जहाँ सुरझित रख सकें रोटियां ------
डरते हैं हम
उस इन्सान से
जिसके पेट मैं भूख पल रही हे
जो अचानक युद्ध करके
झपट लेगा हमारी रोटियां -------------
हमारी सुरझित रोटियों के कारण
युद्ध होगा
मानव मरेगें
मरेंगे पशु -पक्झी
नष्ट हो जायगी धरती की हरयाली
फिर चैन से बांटकर खायेंगे रोटियां
जिनमे तब तक फफूंद लग चुकी होगी -----------------
ऐसा ही होगा जब -तब
जीवन की तलाश से
अधिक महत्वपुर्ण रहेगा
मारने के साधनों का निर्माण -------------------
रोटी की तलाश के बजाय
बमों की तलाश मैं जुटे हैं हम
डरते हैं
रोटियों को
कोई हथिया न ले-----------
भूखे पेट रहकर
एक तहखाना बना रहे हैं हम
जहाँ सुरझित रख सकें रोटियां ------
डरते हैं हम
उस इन्सान से
जिसके पेट मैं भूख पल रही हे
जो अचानक युद्ध करके
झपट लेगा हमारी रोटियां -------------
हमारी सुरझित रोटियों के कारण
युद्ध होगा
मानव मरेगें
मरेंगे पशु -पक्झी
नष्ट हो जायगी धरती की हरयाली
फिर चैन से बांटकर खायेंगे रोटियां
जिनमे तब तक फफूंद लग चुकी होगी -----------------
ऐसा ही होगा जब -तब
जीवन की तलाश से
अधिक महत्वपुर्ण रहेगा
मारने के साधनों का निर्माण -------------------
बुधवार, मई 09, 2012
जेठ मास में
अनजाने ही मिले अचानक
एक दुपहरी जेठ मास में
खड़े रहे हम बरगद नीचे
तपती गर्मी जेठ मास में -
प्यास प्यार की लगी हुई
होंठ मांगते पीना
सरकी चुनरी ने पोंछा
बहता हुआ पसीना
रूप सांवला हवा छु रही
महका बेला जेठ मास में -
बोली अनबोली आंखे
पता मांगती घर का
लिखा धुप में ऊँगली से
ह्रदय देर तक धड़का
कोल तार की सड़क धुन्दती
पिघल रही वह जेठ मास में -
स्मृतियों के उजले वादे
सुबह सुबह ही आते
भरे जलाशय शाम तलक
मन के सूखे जाते
आशाओ के बाग़ खिले जब
बूंद टपकती जेठ मास में -
love
प्यार भी अजीब है
चाहे जब
दरवाज़ा खटखटाता है
दिल घबराहट मे
दहल जाता है
खोलता हूँ -
डरते -डरते मन के किवाड़
पंछी प्यार का धीरे से
निकल जाता है...........
"ज्योति "