अनजाने ही मिले अचानक
एक दुपहरी जेठ मास में
खड़े रहे हम बरगद नीचे
तपती गर्मी जेठ मास में -
प्यास प्यार की लगी हुई
होंठ मांगते पीना
सरकी चुनरी ने पोंछा
बहता हुआ पसीना
रूप सांवला हवा छु रही
महका बेला जेठ मास में -
बोली अनबोली आंखे
पता मांगती घर का
लिखा धुप में ऊँगली से
ह्रदय देर तक धड़का
कोल तार की सड़क धुन्दती
पिघल रही वह जेठ मास में -
स्मृतियों के उजले वादे
सुबह सुबह ही आते
भरे जलाशय शाम तलक
मन के सूखे जाते
आशाओ के बाग़ खिले जब
बूंद टपकती जेठ मास में -