बुधवार, मई 09, 2012

जेठ मास में

अनजाने ही मिले अचानक  
एक दुपहरी जेठ मास में 
खड़े रहे हम बरगद नीचे 
तपती गर्मी जेठ मास में -

प्यास प्यार की लगी हुई
होंठ मांगते पीना 
सरकी चुनरी ने पोंछा
बहता हुआ पसीना 

रूप सांवला हवा छु रही 
महका बेला जेठ मास में -

बोली अनबोली आंखे 
पता मांगती घर का 
लिखा धुप में ऊँगली से 
ह्रदय देर तक धड़का 

कोल तार की सड़क धुन्दती 
पिघल रही वह जेठ मास में -

स्मृतियों के उजले वादे 
सुबह सुबह ही आते 
भरे जलाशय शाम तलक 
मन के सूखे जाते 

आशाओ के  बाग़ खिले जब 
बूंद टपकती  जेठ मास में -

दुःख

महफ़िल दुखड़ो पर आयोजित 

हंसी खो गई अभी - अभी 
 दुःख की चर्चा जगह - जगह
 सुख की बातें कभी - कभी .........


-"ज्योति"