मटके का पानी पी पी कर
थके मुसाफिर की तरह---
आसमान में टंके सलमे सितारों वाली
ईंट के चूल्हे में सिंक रही रोटियों की कराह
कब बाप की मिट्टी से सनी उंगलियां
उसकी किलकारियों को आसमान की तरफ उछालेंगी---
मजदूरों,कलाकारों की भूख से सजे शहर में
रोटियों से ज्यादा जरुरी है
चंदे के रुपयों से
रंगबिरंगी बिजलियों का चमकना--
मिट्टी से सनी उंगलियां
अभी भी व्यस्त हैं
सुंदर सृजन को आकार देने में ------
"ज्योति खरे"
चित्र - ज्योति खरे