गुहार
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गालियां देता मन
दहशत भरा माहौल
चुप्पियां दरवाजा
बंद कर रहीं
खिड़कियाँ रहीं खोल
थर्मामीटर नाप रहा
शहर का बुखार
सिसकियां लगा रहीं
जिंदा रहने की गुहार
आंकड़ों के खेल में
आदमी के जिस्म का
क्या मोल
राहत के नाम का
पीट रहे डिंडोरा
उम्मीदों का कागज
कोरा का कोरा
शामयाने में हो रहीं
तार्किक बातें
सड़कों में बज रहा
उल्टा ढोल---
"ज्योति खरे"