मंगलवार, अप्रैल 02, 2013

हल्ला बोल बे--------

                                 चिल्लाकर मुहं खोल बे
                                 हल्ला बोल,हल्ला बोल बे----
 

                                 नेताओं की तोंद देखकर
                                 पचका पेट टटोल बे----
 

                                 सुरा सुंदरी और सत्ता का
                                 स्वाद चखो बकलोल बे----
 

                                 सत्ता नाच रही सड़कों पर
                                 चमचे बजा रहे ढोल बे----
 

                                 बहुमत का फिर हंगामा
                                 बता दे अपना मोल बे----
 

                                 भिखमंगे जब बहुमत मांगें
                                 खोल दे इनकी पोल बे---- 
 

                                 तेरे बूते राजा और रानी
                                 दिखा दे अपना रोल बे----
 

                                 बेशकीमती लोकतंत्र को
                                 फ़ोकट में मत तॊल बे----
 

                                 अब मतदान नहीं करना
                                 कानों में रस घोल बे----
 

                                                        "ज्योति खरे"



29 टिप्‍पणियां:

  1. तेरे बूते राजा और रानी
    दिखा दे अपना रोल बे----
    बेहतरीन और मौजू ...

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  2. खूब ज़ोर से व्यंग्य में हल्ला बोला ..बहुत खूब

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  3. आज इसी तरह के हंगामे और हल्ला बोल की जरुरत है...सटीक धारदार रचना... आभार

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  4. यह कविता अलग मिजाज़ की है, पर बहुत अच्छी है।

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  5. यह कविता अलग मिजाज़ की है, पर बहुत अच्छी है।

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  6. काफी़ दम है इस हल्‍ले में ... बेहतरीन प्रस्‍तु‍ति

    आभार

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  7. भिखमंगे जब बहुमत मांगें
    खोल दे इनकी पोल बे----

    हा हा .. सभी दमदार ... मज़ा आया जनाब ...

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  8. बहुमत का फिर हंगामा
    बता दे अपना मोल बे----

    बेशकीमती लोकतंत्र को
    फ़ोकट में मत तॊल बे----
    तीर्थ बन गया तिहाड़ भैया ,

    इसकी भी जय बोल बे .
    बढ़िया व्यंग्य विडंबन .रूपकात्मक तत्व लिए है व्यंग्य रूप कविता रानी .

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  9. इस कविता के माध्यम से सामाजिक सारोकारों को बहुत ही निराले अंदाज में प्रस्तुत कर ज्योति भाई ने अपनी सिध्हस्त लेखनी को एक नया आयाम दिया है आप साधुवाद के पात्र हैं

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  10. bahut bahut...achcha.
    bahut dino baad,itna achha padne ko mila. thanx..

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  11. अच्छी संदेशात्मक है आपकी ज्योति जी ,सुंदर

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  12. बहुत सुन्दर और सार्थक प्रस्तुति! वर्तमान दशा पर बहुत सुन्दरता से कटाक्ष किया आपने। इस रचना पर बधाई!

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  13. तेरे बूते राजा और रानी
    दिखा दे अपना रोल बे----

    बेशकीमती लोकतंत्र को
    फ़ोकट में मत तॊल बे----

    बेहतरीन !

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  14. सार्थक प्रस्तुति...लोकतंत्र पर हल्ला बोलती हुई...

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  15. बहुत सार्थक कटाक्ष। आपकी आशा पूर्ण हो, ऐसी कामना है।

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  16. सभी को एकजुट हो हल्ला बोल करने की जरुरत है
    बेहतरीन

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  17. हल्ला बोल... अब नहीं तो कब, बोल... देश के हालात पर सटीक रचना, बधाई.

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  18. भिखमंगे जब बहुमत मांगें
    खोल दे इनकी पोल बे---- sahi bat.....

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  19. आपने तो वाकई जोर शोरसे हल्ला बोल दिया

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  20. बेजोड़ नाद निकला है आपकी इस रचना से.

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  21. हाहाहा अच्छा हल्ला बोल है आदरणीय सुन्दर एवं सटीक

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  22. आज की राजनीति पर सटीक रचना .

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  23. असंवैधानिक संदेश देती कविता। नागरिकों से मतदान मे भाग न लेने का आह्वान 'तानाशाही'का समर्थन है जो लोकतन्त्र को नष्ट करने की साम्राज्यवादी साजिश का हिस्सा है।

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  24. अंतिम का शंदेश कुछ अच्छा नहीं लगा ..मतदान के अधिकार से वंचित रहने की सलाह दे रही हैं। बाकि सब ठीक हैं।

    मेरे ब्लॉग पर भी आइये ..अच्छा लगे तो ज्वाइन भी कीजिये
    पधारिये आजादी रो दीवानों: सागरमल गोपा (राजस्थानी कविता)

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  25. बहुत बढ़िया....
    सटीक रचना..

    सादर
    अनु

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