मंगलवार, अप्रैल 09, 2013

सवेरा नहीं हुआ------




                                       बहुत उम्मीद से
                                       तलाशते रहे सहारा
                                       बे-घरों का
                                       बसेरा नहीं हुआ-----
                                       अंधेरे में चले थे
                                       उजाला पकडने
                                       सूरज तो दिखा
                                       सवेरा नहीं हुआ------

                                                          "ज्योति खरे"  

24 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत सुन्दर प्रस्तुति!
    आपको सूचित करते हुए हर्ष हो रहा है कि-
    आपकी इस प्रविष्टी की चर्चा आज बुधवार (10-04-2013) के "साहित्य खजाना" (चर्चा मंच-1210) (मयंक का कोना) पर भी होगी!
    सूचनार्थ...सादर!

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  2. उत्कृष्ट प्रस्तुति-
    शुभकामनायें स्वीकारें-

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  3. चंद पंक्तियां विरोधाभास को व्यक्त करने वाली। अंधेरे में चलाना उजाला पकडने के लिए सूरज तो दिखा पर सबेरा न होना अद्भुत कल्पना।
    drvtshinde.blogspot.com

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  4. वाह, बहुत बढ़िया
    सार्थक रचना
    सादर !

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  5. अंधेरे में चले थे
    उजाला पकडने
    सूरज तो दिखा
    सवेरा नहीं हुआ------
    वाह ... बहुत ही उम्‍दा भाव
    आभार

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  6. सुन्दर भावपूर्ण दार्शनिक प्रस्तुति ,

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  7. बहुत खूब ... उजाला तो मिला पर हाथ नहीं आया ..

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  8. बहुत ही सुन्दर सार्थक प्रस्तुतिकरण.

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  9. आपने कम पंक्तियों में संवेदित भावों को इतना उबाला कि इनकी भाप से हम भी नम हो गए हैं।

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  10. पर बुद्धिरूपेण माँ ने वह सवेरा दे दिया - ब्लॉग बहुत सुन्दर लग रहा है

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  11. नवरात्रों की बहुत बहुत शुभकामनाये
    आपके ब्लाग पर बहुत दिनों के बाद आने के लिए माफ़ी चाहता हूँ
    बहुत खूब बेह्तरीन अभिव्यक्ति!शुभकामनायें
    आज की मेरी नई रचना आपके विचारो के इंतजार में
    मेरी मांग

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  12. वाह कम शब्दों मे ज्यादा बात ---

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  13. नव संवत्सर की हार्दिक बधाई और शुभकामनाएँ!! बहुत दिनों बाद ब्लाग पर आने के लिए में माफ़ी चाहता हूँ

    बहुत खूब बेह्तरीन अभिव्यक्ति

    आज की मेरी नई रचना आपके विचारो के इंतजार में
    मेरी मांग

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  14. कम शब्दों में मार्मिक बात कहने की आपकी सामर्थ्य अद्भुत है ।

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