रविवार, अप्रैल 11, 2021

आम आदमी

आम आदमी
**********
अपने आप से
जूझता 
छली जा रही 
घटनाओं से बचता
घिसट रहा है
कचरे से भरे बोरे की तरह
समय की तपती 
काली जमीन पर

वह 
आसमान में टंगे
सूरज को 
देखकर भी डर जाता है
कि,कहीं टूटकर
उसके ऊपर न गिर पड़े

दिनभर की थकान
पसीने में लिपटी दहशत
और अधमरे सपनों को
खाली जेब में रखे
लौट आता है
घर

गुमशुदा लोगों की सूची में
अपना नाम ढूंढकर--

◆ज्योति खरे◆

17 टिप्‍पणियां:


  1. वह
    आसमान में टंगे
    सूरज को
    देखकर भी डर जाता है
    कि,कहीं टूटकर
    उसके ऊपर न गिर पड़े..
    बहुत सही कहा आपने । आम आदमी का डर है तो ऐसा ही । सदैव की तरह चिंतनपरक सृजन । अति सुन्दर।

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  2. A good informative post that you have shared and thankful your work for sharing the information. I appreciate your efforts. this is a really awesome and i hope in future you will share information like this with us. Please read mine as well. truth of life quotes

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  3. जय मां हाटेशवरी.......

    आप को बताते हुए हर्ष हो रहा है......
    आप की इस रचना का लिंक भी......
    13/04/2021 मंगलवार को......
    पांच लिंकों का आनंद ब्लौग पर.....
    शामिल किया गया है.....
    आप भी इस हलचल में. .....
    सादर आमंत्रित है......


    अधिक जानकारी के लिये ब्लौग का लिंक:
    https://www.halchalwith5links.blogspot.com
    धन्यवाद

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  4. आम आदमी का अस्तित्व सच में कही नहीं है, कचरे का बोरा,तपती धूप,दिनभर की थकान,खाली जेब में लिए वो आम आदमी अक्सर दिख जाता है, पर कौन पूंछे उसे । मर्म छूता सुंदर सृजन ।

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  5. सादर नमस्कार ,

    आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल मंगलवार (13-4-21) को "काश में सोलह की हो जाती" (चर्चा अंक 4035) पर भी होगी।
    आप भी सादर आमंत्रित है।
    --
    कामिनी सिन्हा

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  6. आम आदमी के डर को बयान करती सशक्त रचना

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  7. गुमशुदा लोगों की सूची में
    अपना नाम ढूंढकर--
    अंतिम पंक्ति सब कुछ कह रही । बहुत संवेदनशील रचना।

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  8. आम आदमी के मन को झकझोरता आम आदमी...।
    बेहतरीन सृजन सर।

    सादर प्रणाम।

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  9. बहुत ही सुंदर सराहनीय सृजन सर।
    सादर

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  10. बहुत गहरे अर्थों को उकेरता सुंदर बिम्ब विधान और मोहक शब्द चित्र।

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  11. आम आदमी की विषम परिस्थिति ऐसी ही होती है
    सराहनीय कृति

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  12. गुमशुदा लोगों की सूची में
    अपना नाम ढूंढकर-
    ओह!!!
    यही सच है आम आदमी का...
    बहुत ही हृदयस्पर्शी लाजवाब सृजन।

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  13. अपने आप से
    जूझता
    छली जा रही
    घटनाओं से बचता
    घिसट रहा है
    कचरे से भरे बोरे की तरह
    समय की तपती
    काली जमीन पर

    वह
    आसमान में टंगे
    सूरज को
    देखकर भी डर जाता है
    कि,कहीं टूटकर
    उसके ऊपर न गिर पड़े

    दिनभर की थकान
    पसीने में लिपटी दहशत
    और अधमरे सपनों को
    खाली जेब में रखे
    लौट आता है
    घर

    गुमशुदा लोगों की सूची में
    अपना नाम ढूंढकर--
    बेहतरीन, हृदय हृदयस्पर्शी लाजवाब रचना,सच ही तो है, सादर नमन, शुभ प्रभात, नव वर्ष मंगलमय हो नवरात्री की हार्दिक शुभकामनाएं

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