रविवार, अगस्त 03, 2025

दोस्त के लिए

दोस्त के लिए
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दोस्त
तुम्हारी भीतरी चिंता
तुम्हारे चेहरे पर उभर आयी है
तुम्हारी लाल आँखों से
साफ़ झलकता है
कि,तुम
उदासीन लोगों को
जगाने में जुटे हो 

ऐसे ही बढ़ते रहो
हम तुम्हारे साथ हैं

मसीह सूली पर चढ़ा दिए गये
गौतम ने घर त्याग दिया
महावीर अहिंसा की खोज में भटकते रहे
गांधी को गोली मार दी गयी

संवेदना की जमीन पर
कोई नया वृक्ष नहीं पनपा
क्योंकि
संवेदना की जमीन पर
नयी संस्कृति ने
बंदूक थाम रखी है

बंजर और दरकी जमीन पर
तुम
नए अंकुर
उपजाने में जुटे हो

ऐसे ही बढ़ते रहो
हम तुम्हारे साथ हैं

जो लोग
संगीतबद्ध जागरण में बैठकर
चिंता व्यक्त करते हैं
वही आराम से सोते हैं
इन्हें सोने दो

तुम्हारी चिंता
महानगरीय सभ्यता में हो रही गिरावट
और बाज़ार के आसमान
छूते भाव पर है

तुम अपनी छाती पर
वजनदार पत्थर बांधकर
चल रहे हो उमंग और उत्साह के साथ
मजदूरों का हक़ दिलाने 

ऐसे ही बढ़ते रहो
हम तुम्हारे साथ हैं

दोस्ती जिंदाबाद---

◆ज्योति खरे

5 टिप्‍पणियां:

  1. इंकलाबी दोस्ती ज़िंदाबाद।
    बिल्कुल अलग तरह की अभिव्यक्ति सर, सकारात्मकता का प्रवाह।
    सादर प्रणाम सर।
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    जी नमस्ते,
    आपकी लिखी रचना मंगलवार ५ अगस्त २०२५ के लिए साझा की गयी है
    पांच लिंकों का आनंद पर...
    आप भी सादर आमंत्रित हैं।
    सादर
    धन्यवाद।

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  2. बहुत सुंदर , नई संस्कृति ने बन्दूकें थम रखी हैं , वाह ।

    जवाब देंहटाएं