गीत
बांट रहा याचक हांथों को
राहत के ताबीज----
प्यासी रहकर स्वयं चांदनी
बाँध पाँव में घुंघरु नाचे
काटे नहीं कटे दिन जलते
तीखी मिरची,गरम मसाला
हर टहनी पर,पत्ते पर है
नये समय की,नयी सीख अब
"ज्योति खरे"
बहुत सुन्दर रचना ...
जवाब देंहटाएंसच में आपकी रचना पढ़कर जीवन लगे लजीज। सुन्दर प्रस्तुति। धन्यवाद।
जवाब देंहटाएंनये लेख : श्रद्धांजलि : अब्राहम लिंकन
प्राण जी को दादा साहब फाल्के पुरस्कार और भगत सिंह की याचिका।
सुंदर प्रस्तुति आभार ..
जवाब देंहटाएंसुंदर प्रस्तुति आभार ..
जवाब देंहटाएंबहुत ही बेहतरीन सुन्दर रचना,आपका आभार.
जवाब देंहटाएंहर पंक्ति अपनी गहराई लिये हुये
जवाब देंहटाएंसादर
हर टहनी पर, पत्ते पर मकडी का जाला
जवाब देंहटाएंसुबह सिंदूरी कहाँ दिखे
चश्मा पहना काला ..........वर्तमान के विरोधाभासों को सुन्दरता से उकेरती कविता।
प्यासी रहकर स्वयं चांदनी
जवाब देंहटाएंबांटे ओस-नमी
बिछे गलीचे हरियाली के
महफ़िल खूब जमी
........हर शब्द में गहराई, बहुत ही बेहतरीन प्रस्तुति ।
अच्छे रूपकों के साथ रचना प्रस्तुत करने के लिए धन्यवाद
जवाब देंहटाएंहर टहनी पर, पत्ते पर है
जवाब देंहटाएंमकडी का जाला
सुबह सिंदूरी कहाँ दिखे
चश्मा पहना काला
satik baat kahi hai ..
आपकी इस उत्कृष्ट प्रविष्टि की चर्चा कल मंगलवार १६ /४/ १३ को चर्चा मंच पर राजेश कुमारी द्वारा की जायेगी आपका वहां स्वागत है ।
जवाब देंहटाएंनये समय की, नयी सीख अब
जवाब देंहटाएंदेती नयी तमीज---
सुंदर शब्द व भाव !
गहन भाव लिए सुंदर अभिव्यक्ति
जवाब देंहटाएंआप की तो बात ही अलग है, ज्योति भाई. सुन्दर अभिव्यक्ति. बधाई.
जवाब देंहटाएंसुंदर भाव........
जवाब देंहटाएं' सुबह सिंदूरी कहाँ दिखे
जवाब देंहटाएंचश्मा पहना काला '
- बिना चश्मे के देखना मुश्किल लगता है लोगों को !
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर प्रस्तुति !
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बहुत सुन्दर गीत ज्योति खरे जी ।आपका ब्लाँग भी बहुत अच्छा है। बधाई ।
जवाब देंहटाएंआप सभी का आभार
जवाब देंहटाएंआपकी प्रतिक्रिया से लेखन को उर्जा मिलती है
बहुत सुंदर...काला चश्मा से प्राकृतिक सौन्दर्य नहीं दिखता...गहन अभिव्यक्ति !!
जवाब देंहटाएंWah ati sundar
जवाब देंहटाएंहर टहनी पर, पत्ते पर है मकडी का जाला सुबह सिंदूरी कहाँ दिखे चश्मा पहना काला
जवाब देंहटाएंनये समय की, नयी सीख अब देती नयी तमीज---!
bahut khoob....
प्यासी रहकर स्वयं चांदनी बांटे ओस-नमी बिछे गलीचे हरियाली के महफ़िल खूब जमी....बहुत सुंदर रचना...
जवाब देंहटाएंबहुत ही सुन्दर नवगीत |
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर.
जवाब देंहटाएंवाह ... बहुत ही सुन्दर नवगीत ...
जवाब देंहटाएंबेहतरीन शब्द संयोजन ... मज़ा आ गया ...
बहुत सुन्दर.....
जवाब देंहटाएंसादर...
अनु
हर टहनी पर, पत्ते पर है
जवाब देंहटाएंमकडी का जाला
सुबह सिंदूरी कहाँ दिखे
चश्मा पहना काला
....बहुत सुन्दर और सटीक अभिव्यक्ति...
सुंदर .बेह्तरीन अभिव्यक्ति !शुभकामनायें.
जवाब देंहटाएंवाह! बेहद खूबसूरत रचना |
जवाब देंहटाएंकभी यहाँ भी पधारें और लेखन भाने पर अनुसरण अथवा टिपण्णी के रूप में स्नेह प्रकट करने की कृपा करें |
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सुंदर प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर रचना, बहुत सुन्दर
जवाब देंहटाएंवक़्त बदला है,पर ख्वाहिश वही है आज भी
जवाब देंहटाएंअब तो समझो इस बात को कि बोया पेड़ बबूल का तो आम कहाँ से खाए ....
sundar rachna
जवाब देंहटाएंजीवन से जुडी सुंदर अनुभूति
जवाब देंहटाएंबेहतरीन.....
जवाब देंहटाएंनये समय की, नयी सीख अब
देती नयी तमीज---
सुन्दर रचना
जवाब देंहटाएंसुन्दर रचना,...
जवाब देंहटाएंmain aapkaa kaise shukriyaa krun.......ki aap mere blog tak ..aaye...aur fir maine aapka blog dekha....wrnaa itnii achii rchnaaye ..main pr hi nhi paati...wat a thot sir.........bahut khoob....shukriyaa...apne lekhn saajhaa krne ke liye
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