शनिवार, सितंबर 21, 2013

क्षणिका सम्राट---मिश्रीलाल जायसवाल--------

क्षणिका सम्राट---मिश्रीलाल जायसवाल
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 जीवन की तमाम संवेदनाएं समाज से जुड़ी हुई होती हैं,और हम इसी समाज का हिस्सा होते हैं.इसी समाज में जन्मते हैं, अपनी भूमिका का निर्वाह करते हैं, और चले जातें हैं- "अद्रश्य अंधकार" में-
छोड़ जाते हैं,अपने ना होने का दुःख,जिंदा रहती हैं,स्मृतियाँ,व्यक्तित्व,कृतित्व- ऐसे ही समाजवादी विचारधारा के व्यक्तित्व "बाबूजी- मिश्रीलाल जायसवाल" अब हमारे बीच
नहीं हैं.लेकिन उनका कृतित्व आज भी हमारे बीच जिन्दा है.


मिश्रीलाल जायसवाल व्यापारी थे, लेकिन मूलतः समाज सुधारक,संवेदना को समझने वाले बेहतरीन इंसान थे,उनकी यही संवेदनशीलता धीरे-धीरे कविता में उतरने लगी और बाबूजी  "क्षणिका सम्राट"बन गए.

***सांपों की नगरी में मैं
डंसे जाने का शौकीन
उन्हें खुश करने के लिए बजाता हूँ बीन
डसे जाने के लिए लाईन में लगता हूं
दफ्तरों के चक्कर काटते नहीं थकता हूं
सांपों को अपने गांव बुलाकर
उनका अभिनंदन करता हूं
उनकी बांबीं में जाकर
उनके निशान को पूजता हूं
फिर पांच साल तक
डंसन की जलन में बिसूरता हूं
और अब विष का इतना बढ़ गया है ताप
मैं खुद बन गया हूं
सांप का भी बाप------ ***

बाबूजी जी का जन्म मिर्जापुर उ.प्र. में ११ मई १९१९को हुआ,इलाहावाद विश्वविद्यालय से बी.एस.सी.(स्नातक)की डिग्री प्राप्त की ,इनका भरा पूरा खानदान है.अपनी समस्त सृजनात्मक ऊर्जा अपने पुत्र
"शरद जायसवाल"जो स्वयं प्रसिद्ध हास्य व्यंग कवि हैं,को २२ सितम्बर २००७ को सौंप कर स्वर्ग सिधार गये.    

मिश्रीलाल जायसवाल के चार कविता संग्रह प्रकाशित हो चुके हैं----

(१)-चौराहे की बात --१९८१
(२)-हर शाख पे उल्लू बैठा है --१९८७
(३)-मिश्रीलाल जायसवाल की सुक्ष्मिकाएं --१९९९
(४)-तोते की आंख --२००१
मिश्रीलाल जायसवाल जी के संदर्भ में सुप्रसिद्ध व्यंगकार 
"हरिशंकर परसाई"जी ने लिखा था--

***श्री मिश्रीलाल जायसवाल एक अरसे से बहुत लघु काव्य व्यंग्योक्तियाँ लिख रहे हैं,कुछ ही पंक्तियों में किसी विषय,घटना या प्रव्रत्ति को लेकर विडंबना को उभारना आसान काम नहीं है.मिश्रीलाल जी ने इस कला को साधा है.ये लघु काव्य खंड काफी चुटीले होते हैं.इनका आयाम विस्तृत है.मिश्रीलाल जी सामाजिक प्रवृत्ति,व्यक्तिगत बिडंबना,धार्मिक पाखंड,राजनैतिक गतिविधि आदि पर समान क्षमता से व्यंग करते हैं.उनकी द्रष्टि आधुनिक और
प्रगतिशील है और वे प्रगतिशील जीवन मूल्यों को स्वीकारते हैं.उनका अनुभव क्षेत्र व्यापक है, इसलिये उनकी रचनाओं में विविधता है. बिडंबना को वे बखूबी उभारते हैं.वे आगे लिखें,खूब लिखें--
*हरिशंकर परसाई*   
१९८७


*राष्ट्रिय समस्याओं पर
 युद्ध करने में हम
                                          शिवाजी के अनुगामी हो रहे
                                          वे घोड़े पर सो लेते थे
                                           हम घोड़े बेचकर
                                            सो रहे हैं-----*

सीधी,सरल,सहज भाषा कम से कम शब्द पर गहरे अर्थ लिये हुए,कोई लाग लपेट नहीं कोई भूमिका नहीं,सीधी,सच्ची,सटीक बात रहती है इनकी क्षणिकाओं में,सामाजिक,राजनीतिक और अव्यवस्थाओं पर गहरा और सार्थक प्रहार इनकी रचनाओं का मूल कथ्य रहा है.यहीं कारण
है कि बाबूजी को "क्षणिका सम्राट"कहा जाता है. एक ऐसा प्रतिबद्ध रचनाकार जो बेबाक अपनी बात कहने में सक्षम था.उनकी रचनायें,हास्य,व्यंग के माध्यम से गुदगुदाती है.चुभती भी हैं.यही बाबूजी जी की रचनाओं का सार्थक सच है.
उनकी पुण्यतिथि पर नमन------

*गांधी के राम को
स्थापित करने में
हम पूरी तरह
सफल रहे हैं
प्रशासन के सारे काम
राम भरोसे चल रहे हैं------*
 

"ज्योति खरे"
 

 

20 टिप्‍पणियां:

  1. आपने लिखा....हमने पढ़ा....
    और लोग भी पढ़ें; ...इसलिए आपकी पोस्ट हिंदी ब्लॉगर्स चौपाल में शामिल की गयी और आप की इस प्रविष्टि {रविवार} 22/09/2013 को जिंदगी की नई शुरूवात..... - हिंदी ब्लॉगर्स चौपाल – अंकः008 पर लिंक की गयी है। कृपया आप भी पधारें, आपके विचार मेरे लिए "अमोल" होंगें। सादर ....ललित चाहार

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  2. बहुत सुन्दर प्रस्तुति...!
    आपको सूचित करते हुए हर्ष हो रहा है कि आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा आज रविवार (22-09-2013) “अनुवाद-DEATH IS A FISHERMAN” - चर्चामंच -1376 में "मयंक का कोना" पर भी है!
    हिन्दी पखवाड़े की हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

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  3. ष्ट्रिय समस्याओं पर
    युद्ध करने में हम
    शिवाजी के अनुगामी हो रहे
    वे घोड़े पर सो लेते थे
    हम घोड़े बेचकर
    सो रहे हैं-----*

    मिश्रीलाल जायसवाल को चिठ्ठों में लाने का शुक्रिया। श्लाघनीय कर्म आपका निष्काम भाव।

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  4. राष्ट्रीय समस्याओं पर
    युद्ध करने में हम
    शिवाजी के अनुगामी हो रहे
    वे घोड़े पर सो लेते थे
    हम घोड़े बेचकर
    सो रहे हैं-----*

    मिश्रीलाल जायसवाल को चिठ्ठों में लाने का शुक्रिया। श्लाघनीय कर्म आपका निष्काम भाव।

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  5. साभार धन्यवाद्

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  6. आज हास्य कवि श्री मिश्रीलाल जायसवाल जी ( क्षणिका के जनक )की पुण्य तिथि पर काव्यांजलि स्वरूप दो पंक्ति उनके चरणों में समर्पित -
    चोटी
    दो
    से
    एक होने की कहानी
    मन
    को
    निचोड़ती है !
    गाड़ी
    एक
    पटरी पर
    कहाँ दौड़ती है !!
    - शरद जायसवाल कटनी म.प्र. इंडिया
    मो. 09893417522

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  7. बहुत अच्छी जानकारी .पुण्यतिथि पर नमन.
    नई पोस्ट : अद्भुत कला है : बातिक


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  8. बहुत सुन्दर प्रस्तुति...पुण्यतिथि पर नमन..

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  9. पुण्‍यतिथि पर सादर नमन ...

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  10. जायसवाल जी के पुण्यतिथि पर उनके बारे में सुंदर लेख।

    आपका अनेक आभार इस चिठ्ठे के लिये।

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  11. बहुत सार्थक लेख, पढ़कर बहुत अच्छा ...


    .. आपकी इस रचना के लिंक की प्रविष्टी सोमवार (30.09.2013) को ब्लॉग प्रसारण पर की जाएगी, ताकि अधिक से अधिक लोग आपकी रचना पढ़ सकें . कृपया पधारें .

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  12. बहुत सार्थक लेख, पढ़कर बहुत अच्छा ...


    .. आपकी इस रचना के लिंक की प्रविष्टी सोमवार (30.09.2013) को ब्लॉग प्रसारण पर की जाएगी, ताकि अधिक से अधिक लोग आपकी रचना पढ़ सकें . कृपया पधारें .

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  13. अच्छी जानकारी ,पुण्यतिथि पर श्रद्धांजलि
    नई पोस्ट अनुभूति : नई रौशनी !
    नई पोस्ट साधू या शैतान

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  14. "गांधी के राम को स्थापित करने में हम पूरी तरह सफल रहे हैं प्रशासन के सारे काम राम भरोसे चल रहे हैं------*"

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  15. नमन है साहित्य की इस महान विभूति को ...
    सच में व्यंग से भरी क्षणिकाएं इन्हें उच्च मुकाम देती हैं ... आभार आपका ...

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