उम्मीद तो हरी है .........
दौर पतझड़ का सही, उम्मीद तो हरी है
गुरुवार, अक्टूबर 17, 2013
सीमा रेखा से-----
माँ
जब तुम याद करती हो
मुझे हिचकी आती है
पीठ पर लदा
जीत का सामान
हिल जाता है----
विजय पथ पर
चलने में
तकलीफ होती है----
माँ
मैं बहुत जल्दी आऊंगा
तब खिलाना
दूध भात
पहना देना गेंदे की माला
पर रोना नहीं
क्योंकि
तुम बहुत रोती हो
सुख में भी
दुःख में भी-------
"ज्योति खरे"
चित्र--
गूगल से साभार
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