नफरतें प्रेम की कोख से ही जन्मती हैं---------
तोड़ डालो सारे भ्रम
कि तुम्हारी सुंदरता को
निहारता हूं
नजाकत को पढ़ता हूं
संत्रास हूं--
तराश कर रख ली है सूरत
ह्रदय में------
होंगे वो कोई और
जो रखते होंगे धड़कनों में तुम्हें
बहा आओ किसी नदी में
मिले हुए मुरझाऐ फूलों के संग
अपना रुतबा,घमंड
मैंने कभी नहीं रखा
अपनी धड़कनों में तुम्हें
धड़कनों का क्या
चाहे जब रुक जायेंगी
आत्मिक हूं---
आत्मा में बसा रखा है
जहां भी जाऊंगा संग ले जाऊंगा------
लिखो,लिखो कई बार लिखो
कि मुझसे करती हो नफरत
देती हो बददुआ
नफरतें प्रेम की कोख से ही जन्मती हैं
बांध लो अपने दुपट्टे में
मेरी भी यह दुआ------
जलाकर आ गया हूं
बूढ़े पीपल की छाती पर
एक माटी का दिया
सुना है
रात के तीसरे पहर
दो आत्माओं का मिलन होता है-------
"ज्योति खरे"
चित्र-- गूगल से साभार
वाह.... बहुत ही सुंदर
जवाब देंहटाएंमिलन हो चाहे कैसे भी।
जवाब देंहटाएंसर सॉलिड धरा है , बहुत सही , धन्यवाद
जवाब देंहटाएंवाह !
जवाब देंहटाएंसुंदर अभिव्यक्ति...
जवाब देंहटाएंवाह-- बहुत ही सुंदर
जवाब देंहटाएंसुन्दर प्रस्तुति-
जवाब देंहटाएंशुभकामनायें आदरणीय
उदात्त प्रेम भाव...!!
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर... आत्मिक हूँ आत्मा में बसा रखा हं
बहुत ही सुंदर.....नमस्ते चाचाजी
जवाब देंहटाएंबहुत सही...सुंदर अभिव्यक्ति...
जवाब देंहटाएंअति सुंदर रचना है।
जवाब देंहटाएंसुन्दर भावाभिव्यक्ति.. गणतंत्र दिवस की हार्दिक शुभकामनाएँ...
जवाब देंहटाएं-हिमकर श्याम
http://himkarshyam.blogspot.in
जलाकर आ गया हूं
जवाब देंहटाएंबूढ़े पीपल की छाती पर
एक माटी का दिया
सुना है
रात के तीसरे पहर
दो आत्माओं का मिलन होता है-------
क्या बात है .... नि:शब्द करती अभिव्यक्ति
प्रशंसनीय रचना - बधाई
जवाब देंहटाएंआग्रह है-- हमारे ब्लॉग पर भी पधारे
शब्दों की मुस्कुराहट पर ....दिल को छूते शब्द छाप छोड़ती गजलें ऐसी ही एक शख्सियत है