उम्मीद तो हरी है .........
दौर पतझड़ का सही, उम्मीद तो हरी है
शुक्रवार, जून 20, 2014
फुरसतिया बादल ------
बजा बजा कर
ढोल नगाड़े
फुरसतिया बादल आते
बिजली के संग
रास नचाते
बूंद बूंद चुचुआते-----
कंक्रीट के शहर में
ऋतुयें रहन धरी
इठलाती नदियों में
रोवा-रेंट मची
तर्कहीन मौसम अब
तुतलाते हकलाते ------
चुल्लू जैसे बांधों में
मछली डूब रही
प्यासे जंगल में पानी
चिड़िया ढूंढ रही
प्यासी ताल-तलैयों को
रात-रात भरमाते ------
"ज्योति खरे"
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