शनिवार, फ़रवरी 10, 2018

टेडी-बियर

टेडी-बियर
*********
कपास के जंगल से उड़कर
असुंदर,रंगीन गुदगुदा गोला
युद्धरत आदमियों के बीच गिरा

झुर्रीदार चमड़ी और
धधकती आंखों ने
सजाकर, संवारकर
सहमे सिसकते बच्चों के बीच बैठा दिया
बच्चों ने अपनाया, पुचकारा और बहुत चूमा

मैं अपने भाग्य पर
इतराता नहीं हूं
क्योंकि पुराना होते ही
टुकड़े-टुकड़े कर
फेंक दिया जाता हूँ
कचरे के ढेर पर

मैं दयालु हत्यारों की तलाश में
उड़ रहा हूँ
आकाश से धरती तक
क्योंकि कभी मरता नहीं है
टेडी-बियर

आपके घर फिर आऊंगा
बच्चों के आंसू पोछने-----

" ज्योति खरे "

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें