मंगलवार, मई 22, 2018

चाहत

अच्छे दोस्त हैं
नदी और पहाड़
दिनभर एक दूसरे को धकियाते
खुसुर-पुसुर बतियाते

रात के गहन सन्नाटे में
दोनों
अपनी अपनी चाहतों को
सहलाते पुचकारते हैं

चाहती है नदी
पहाड़ को चूमते बहना
और पहाड़
रगड़ खाने के बाद भी
टूटना नहीं चाहता

दोनों की चाहतों में
दुनियां बचाने की
चाहते हैं------

"ज्योति खरे"

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