शुक्रवार, दिसंबर 21, 2018

घाट पर धुलने गयी है व्यवस्था

समर्थक परजीवी हो रहें हैं
सड़क पर कोलाहल बो रहें हैं

शिकायतें द्वार पर टंगी हैं
अफसर सलीके से रो रहें हैं

जश्न में डूबा समय मौन है
जनमत की थैलियां खो रहें हैं

चौखटों के पांव पड़ते थक गऐ
भदरंगे बेहरूपिये सो रहें हैं

घाट पर धुलने गई है व्यवस्था
आँख से बलात्कार हो रहें हैं----

"ज्योति खरे"

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