तुम्हारे मेंहदी रचे हाथों में
रख दी थी मैंने
अपनी भट्ट पड़ी हथेली
और तुमने
महावर लगे अपने पांव
रख दिये थे
मेरे खुरदुरे आंगन में
साझा संकल्प लिया था
अपन दोनों ने
कि,बढेंगे मंजिल की तरफ एक साथ
सुधारेंगे खपरैल छत
जिसमें गर्मी में धूप
छनकर नहीं
सूरज को भी साथ ले आती है
बरसात बिना आहट के
सीधे कमरे में उतर आती है
कच्ची मिट्टी के घर को
बचा पाने की विवशताओं में
पसीने की नदी में
फड़फड़ाते तैरते रहेंगे
फासलों को हटाकर
अपने सदियों के संकल्पित
सपनों की जमीन परलेटकर
प्यार की बातें करेंगे अपन दोनों
साझा संकल्प तो यही लिया था
कि,मार देंगे
संघर्ष के गाल पर तमाचा
जीत के जश्न में
हंसते हुये बजायेंगे तालियां
अपन दोनों---
"ज्योति खरे"
( आज तैंतीस वर्ष हो गये संकल्प को निभाते हुए )
आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल गुरुवार (14-02-2019) को "प्रेमदिवस का खेल" (चर्चा अंक-3247) पर भी होगी।
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सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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पाश्चात्य प्रणय दिवस की
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
ढेरों शुभकामनाएं 33 साझा वर्षों के लिये साझीदारों को। खुश रहें।
जवाब देंहटाएंब्लॉग बुलेटिन की दिनांक 13/02/2019 की बुलेटिन, " मस्त रहने का ... टेंशन नहीं लेने का ... ब्लॉग बुलेटिन “ , में आप की पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !
जवाब देंहटाएंशादी व साझा संकल्प के इस अनुपम तैतीसवे वर्षगांठ की हार्दिक बधाई । ईश्वर करे यह संकल्प साझा रूप से जन्म-जन्मांतर तक चलता रहे। भाभी जी के हाथों की मेहंदी चमकती रहे। बहुत-बहुत बधाई आदरणीय ज्योति खरे जी।
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत बधाई आपको। ऐसे ही जीवन में प्रेम की बारिश करते रहिए। सुंदर रचना। मेरे ब्लॉग पर आपका स्वागत है।
जवाब देंहटाएंiwillrocknow.com
शादी व साझा संकल्प के इस अनुपम तैतीसवे वर्षगांठ की हार्दिक बधाई ।
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