सोमवार, मार्च 18, 2019

छेवला उर्फ टेसू

फागुन की
समेटकर बैचेनियां
दहक रहा टेसू
महुये की
दो घूंट पीकर
बहक रहा टेसू---

सुर्ख सूरज को
चिढ़ाता खिलखिलाता
प्रेम की दीवानगी का
रूतबा बताता
चूमकर धरती का माथा
चमक रहा टेसू---

गुटक कर भांग का गोला
झूमता मस्ती में
छिड़कता प्यार का उन्माद
बस्ती बस्ती में
लालिमा की ओढ़ चुनरी
चहक रहा टेसू--

जीवन के बियावान में
पलता रहा
पत्तलों की शक्ल में
ढ़लता रहा
आंसुओं के फूल बनकर
टपक रहा टेसू---

"ज्योति खरे"

15 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत ख़ूबसूरत अभिव्यक्ति...

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  2. वाह ! अप्रतिम रचना
    सुप्रभात आदरणीय

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  3. आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल बुधवार (20-03-2019) को "बरसे रंग-गुलाल" (चर्चा अंक-3280) पर भी होगी।
    --
    सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
    --
    होलिकोत्सव की
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

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  4. बहुत खूब ,,,सर आप को होली की हार्दिक बधाई

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  5. बहुत सुंदर। होली की हार्दिक शुभकामनाएं।
    नयी पोस्ट: मंदिर वहीं बनाएंगे।

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  6. बहुत खूबसूरत सृजन । होली की हार्दिक शुभकामनाएं ।

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  7. आपकी लिखी रचना आज ," पाँच लिंकों का आनंद में " बुधवार 27 मार्च 2019 को साझा की गई है..
    http://halchalwith5links.blogspot.in/
    पर आप भी आइएगा..ध

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  8. गुटक कर भांग का गोला
    झूमता मस्ती में
    छिड़कता प्यार का उन्माद
    बस्ती बस्ती में
    लालिमा की ओढ़ चुनरी
    चहक रहा टेसू--बेहतरीन आदरणीय
    मिट्टी की खुशबू सी महक रही है रचना
    सादर

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  9. सुर्ख सूरज को
    चिढ़ाता खिलखिलाता
    प्रेम की दीवानगी का
    रूतबा बताता
    चूमकर धरती का माथा
    चमक रहा टेसू---
    वाह!!!
    बहुत ही सुन्दर.... लाजवाब

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  10. लालिमा की ओढ़ चुनरी
    चहक रहा टेसू--बेहतरीन

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