तूफानो को
पतवार से बांध दिया है
बहसों, बेतुके सवालों
कपटपन और गुटबाजी की
राई, नून, लाल मिर्च से
नजर उतारकर
शाम के धुंधलके में
जला दिया है
कलह, किलकिल और
संघर्षो को
पुटरिया में लपेटकर
बूढ़े नीम पर
टांग दिया है
बांध लिया है
बरगद की छांव में
बटोर कर रखे
तिनका तिनका
सुखों का झूला
दोस्तो मेरे पास आओ
खट्टी- मीठी
तीखी- चिरपरी
स्मृतियों को झुलायेंगे
थोड़ा सा रो लेंगे
थोड़ा सा हंस लेँगे---
"ज्योति खरे"
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल मंगलवार (06-08-2019) को "मेरा वजूद ही मेरी पहचान है" (चर्चा अंक- 3419) पर भी होगी।
जवाब देंहटाएं--
चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
--
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
आभार आपका
हटाएंसुन्दर रचना।
जवाब देंहटाएंआभार आपका
हटाएंआभार आपका
जवाब देंहटाएंकलह, किलकिल और
जवाब देंहटाएंसंघर्षो को
पुटरिया में लपेटकर
बूढ़े नीम पर
टांग दिया है !
सुखद स्वप्न! आशावाद का संदेश देती खूबसूरत रचना। सादर।