जिन्दा रहने की वजह
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सम्हाल कर रखा है
तुम्हारे वादों का
दिया हुआ
ब्राउन रंग का मफलर
बांध लेता हूँ
जब कभी
तब कान में फुसफुसाकर
कहती है ठंड
कि, आज बहुत ठंड है
इन दिनों
उबलते देश में
गिर रही है बर्फ
दौड़ रही है शीत लहर
जानता हूँ
तुम्हारी भी तासीर
बहुत गरम है
पर
मेरी ठंडी यादों को
गर्माहट देना
ओढ़ लेना
मेरा दिया हुआ
ऊनी आसमानी शाल
बहकते, झुंझलाते
और भटकते इस दौर में
प्रेम
जिन्दा रहने की
वजह बनेगा-----
"ज्योति खरे"
बहुत सुंदर और.भावपूर्ण सृजन सर।
जवाब देंहटाएंआपकी रचनाओं में यथार्थ और कल्पना का अनूठा संयोजन बेहद सराहनीय है सर।
आभार आपका
हटाएंऔर भटकते इस दौर में
जवाब देंहटाएंप्रेम
जिन्दा रहने की
वजह बनेगा
लाजवाब।
आभार आपका
हटाएंवाह ...
जवाब देंहटाएंबहुत लाजवाब ... प्रेम की ठंडी उम्मीद को गर्म मफलर ...
हमेशा की तरह लाजवाब बिम्ब ...
जी नमस्ते,
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा सोमवार (30-12-2019) को 'ढीठ बन नागफनी जी उठी!' चर्चा अंक 3565 पर भी होगी।
आप भी सादर आमंत्रित हैं…
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रवीन्द्र सिंह यादव
आभार आपका
हटाएंभावपूर्ण हृदय स्पर्शी सृजन।
जवाब देंहटाएंआभार आपका
हटाएंबहुत सुंदर अभिव्यक्ति
जवाब देंहटाएंआभार आपका
हटाएंबहुत सुंदर
जवाब देंहटाएंआभार आपका
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