बसंत तुम लौट आये
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अच्छा हुआ
इस सर्दीले वातावरण में
तुम लौट आये हो
सुधर जाएगी
बर्फीले प्रेम की तासीर
मौसम की नंगी देह पर
जमने लगेगी
कुनकुनाहट
लम्बे अवकाश के बाद
सांकल के भीतर से
आने लगेंगी
खुसुर-फुसुर की आवाजें
गर्म सांसों की
सनसनाहट से
खिसकने लगेंगी रजाई
दिनभर इतराती
धूप
चबा चबा कर
खाएगी
गुड़ की पट्टी
राजगिर की लैय्या
और तिलि के लड्डू
वाह!! बसंत
कितने अच्छे हो तुम
जब भी आते हो
प्रेम में
सुगंध भरकर चले जाते हो---
" ज्योति खरे "
सुंदर सृजन।🌻
जवाब देंहटाएंआभार आपका
हटाएंवाह!! बसंत
जवाब देंहटाएंकितने अच्छे हो तुम
जब भी आते हो
प्रेम में
सुगंध भरकर चले जाते हो---
जरुरी है नीरस जीवन में वसंत के रंग
बहुत सुन्दर
आभार आपका
हटाएंवाह! बहुत ही सुंदर सृजन सर।
जवाब देंहटाएंवाह!! बसंत
कितने अच्छे हो तुम
जब भी आते हो
प्रेम में
सुगंध भरकर चले जाते हो---हृदय स्पर्शी।
सादर
लाजवाब सृजन।
जवाब देंहटाएंआभार आपका
हटाएंआपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" ( 2028...कलेंडर पत्र-पत्रिकाओं में सिमट गया बसंत...) पर गुरुवार 04 फ़रवरी 2021 को साझा की गयी है.... पाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
जवाब देंहटाएंआभार आपका
हटाएंबसंत उम्मीद है
जवाब देंहटाएंजीवन के उदास पतझड़ में नये कोंपल फूटने की।
सुंदर रचना।
प्रणाम सर।
सादर।
आभार आपका
हटाएंबहुत ही सुंदर सृजन।
जवाब देंहटाएंआभार आपका
हटाएंजी नमस्ते ,
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल गुरुवार (०४-०२-२०२१) को 'जन्मदिन पर' (चर्चा अंक-३९६७) पर भी होगी।
आप भी सादर आमंत्रित है।
--
अनीता सैनी
आभार आपका
हटाएंबहुत सुन्दर लेखन
जवाब देंहटाएंआभार आपका
हटाएंवसंत के लौटने का सुखद संकेत देती सुंदर रचना 🌹🙏🌹
जवाब देंहटाएंआभार आपका
हटाएंबसंत के समान ही खूबसूरत और सुखद सृजन।
जवाब देंहटाएंआभार आपका
हटाएंबहुत सुंदर
जवाब देंहटाएंलाजबाब सृजन ,सादर नमन आपको
जवाब देंहटाएंआभार आपका
हटाएंअब आए हैं तो बौराएंगे भी
जवाब देंहटाएंआभार आपका
हटाएंबसंत कब आया कब गया, पता ही नहीं चलता शहरी जीवन में तो...उपवन में भी, जीवन में भी । बस प्रतीक्षा ही रह जाती है बसंत की !!!
जवाब देंहटाएंआभार आपका
हटाएंबसंत के विभिन्न मनोहारी आयामों का स्मरण कराती सुंदर कृति..
जवाब देंहटाएंआभार आपका
हटाएंसुंदर सृजन सर
जवाब देंहटाएंआभार आपका
हटाएंवाह!! बसंत
जवाब देंहटाएंकितने अच्छे हो तुम
जब भी आते हो
प्रेम में
सुगंध भरकर चले जाते हो
बहुत सुंदर और भावपूर्ण रचना आदरणीय सर | यूँ तो प्रेम ही जीवन का बसंत है पर बसंत सुप्त प्रेम में नवआशा भरकर उसमें स्पंदन भरता है | सादर |
अति सुन्दर सृजन ।
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