गुरुवार, जुलाई 07, 2022

प्रेम देखता है

प्रेम देखता है
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गांव के बूढ़े बरगद के नीचे बैठकर
कुछ बूढ़े कहते हैं 
प्रेम अंधा होता है

कुछ शहरी बूढ़े
बगीचे में बिछी बेंचों पर बैठकर कहते हैं
प्रेम
पागल होता है  

गांव की बूढ़ी औरतें
खेरमाई के चबूतरे में
बैठकर कहती हैं
प्रेम करने वाले धोखेबाज होते हैं 

शहर की 
भजन मंडली में शामिल महिलाएं कहती हैं 
प्रेम 
भीख मंगवा देता है

हे प्रेम
तू अंधा है
पागल है
धोखेबाज है
और भीख भी मांगता है
फिर भी 
आपस में करते हैं लोग प्रेम 

माना कि तू अंधा है
लेकिन प्रेम के 
उबड़-खाबड़ रास्तों से गुजरता हुआ
दिलों में बैठ जाता है

माना कि तू पागल है
लेकिन
मन की भाषा तो समझता है
धोखेबाज है
लेकिन अपने साथी से
दिल की बात तो करता है

माना कि तू भीख मांगता है
तो मांग 
अपनों से अपने लिए
प्रेम को स्थापित करने के लिए
नए सृजन के बीज अंकुरित करने के लिए
नया संसार बसाने के लिए

प्रेम में जकड़े दो दिल
दो मन
दो जान
जब बैठते हैं किसी एकांत में तो
दोनों की आंखे देखती हैं
एक दूसरे को अपलक
कहते हैं
प्रेम अंधा नहीं होता
हम देखते हैं 
एक दूसरे के भीतर
अपनी अपनी 
उपस्थिति के निशान---

◆ज्योति खरे

14 टिप्‍पणियां:

  1. जी नमस्ते,
    आपकी लिखी रचना शुक्रवार ८ जुलाई २०२२ के लिए साझा की गयी है
    पांच लिंकों का आनंद पर...
    आप भी सादर आमंत्रित हैं।
    सादर
    धन्यवाद।

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  2. वाह!!!!
    प्रेम तो प्रेम है प्रेम पर बहुत ही लाजवाब सृजन।

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  3. प्रेम तो प्रेम है ..... लेकिन कभी कभी एक का आरएम दूसरे के अधिकार का हनन बन जाता है तब दूसरे के लिए ये अंधा , पागल सब बन जाता है ।
    लेकिन प्रेम में डूबे लोग केवल प्रेम के मद से भरी आँखों को ही देख पाते हैं । और इस एहसास को बहुत खूबी से रचा है आपने ।

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  4. प्रेम यदि वास्तव में प्रेम हो तो उससे बड़ी आँख नहीं पर .....

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  5. प्रेम की गहराई में उतरता बहुत गहरा प्रेम।
    मानव भावों की भोगी व्यथा है प्रेम जिसे जिस रूप में मिला उसने वही नाम दे दिया।
    बेहतरीन सृजन।
    सादर

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  6. मन में पैठ जाने वाली बात कह दी आपने।

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