दो समानांतर रेखाएं
आपस में
कभी नहीं मिलती
ऐसा रेखा गणित के जानकार
बताते हैं
लेकिन प्रेम में डूबे दो अजनबी
बताते हैं कि
जब हम खींचते हैं
एक दूसरे के
पास आने के लिए रेखा
तब
दोनों रेखाएं
समानांतर होते हुए भी
एक छोर से
दूसरे छोर को
मिलाने की कोशिश करते हैं
इस तरह का झुकाव
समानांतर होते हुए भी
दो
सीधी रेखाओं को
आपस में जुड़ने का
मशविरा देता है
क्योंकि
प्रेम
रेखा गणित की
रेखाओं में
नहीं उलझना चाहता
वह तो
दो रेखाओं का
घेरा बनाकर
इसके भीतर
बैठना चाहता है
प्रेम
रेखाओं के पचड़े में नहीं पड़ता
वह
अपने होने
और अपने प्रेम के वजूद को
सत्यापित करने की
कोशिश करता है---
◆ज्योति खरे
सुंदर सृजन
जवाब देंहटाएंआभार आपका
हटाएंवाह्ह सर, बेहतरीन भावपूर्ण अभिव्यक्ति।
जवाब देंहटाएंरेखाओं में उलझकर
सुलझाकर अपनी शिराओं को
हलकर कठिन प्रमेय जीवन के
समझाता है
प्रेम का गणित
गूढ़ भावों के महीन सूत्रों में नहीं
सरल रेखा में निहित है।
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प्रणाम सर
सादर।
बहुत अच्छी प्रतिक्रिया
हटाएंवाह
जवाब देंहटाएंआभार आपका
हटाएंबेहतरीन
जवाब देंहटाएंआभार आपका
हटाएंवाह! बहुत सुंदर 👌
जवाब देंहटाएंआभार आपका
हटाएंबहुत बहुत सुन्दर रचना
जवाब देंहटाएंआभार आपका
हटाएंप्रेम
जवाब देंहटाएंरेखाओं के पचड़े में नहीं पड़ता
वह
अपने होने
और अपने प्रेम के वजूद को
सत्यापित करने की
कोशिश करता है---
सही कहा आजीवन बस प्रेम को सत्यापित करने की कोशिश...
लाजवाब स।जन
वाह!!!
आभार आपका
हटाएंप्रेम
जवाब देंहटाएंरेखा गणित की
रेखाओं में
नहीं उलझना चाहता
वह तो
दो रेखाओं का
घेरा बनाकर
इसके भीतर
बैठना चाहता है
सत्य को ख़ूबसूरती से उकेरती लाजवाब कविता । सादर नमस्कार 🙏
आभार आपका
हटाएंआभार आपका
हटाएंबहुत सुन्दर।
जवाब देंहटाएंआभार आपका
हटाएंप्रेम
जवाब देंहटाएंरेखाओं के पचड़े में नहीं पड़ता
वह
अपने होने
और अपने प्रेम के वजूद को
सत्यापित करने की
कोशिश करता है--
सर जी बहुत ही सुंदर रचना