नहीं रख पाते
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खिलखिलाती
बरसात
नहला देती है
पसीने से सनी धूप को
उतरकर दीवारों के सहारे
घुस जाती है
घर के भीतर
भर देती है
मौन संबंधों में संवाद
फिर छत पर बैठकर
गाती है युगल गीत
बरसात
कर देती है
मुरझा रहे प्रेम को
तरबतर
लेकिन हम
सहेजकर रख लेते हैं छतरी
नहीं रख पाते
सहेजकर
बरसात---
◆ज्योति खरे
वाह
जवाब देंहटाएंआभार आपका
हटाएंआहा ... बहुत सुंदर अभिव्यक्ति सर।
जवाब देंहटाएंलाज़वाब।
पतझड़ के इर्द-गिर्द बसी दुनिया
बारिश के एहसास जी नहीं पाती
छतरी में छुपाकर ख़ुद को
अपने हिस्से बारिश
मन भर जी नहीं पाती...।
आभार आपका
हटाएंसुंदर अहसास
जवाब देंहटाएंआभार आपका
हटाएंखिलखिलाती
जवाब देंहटाएंबरसात
नहला देती है
पसीने से सनी धूप को.....क्या खूसूरती से कहा कि ''बरसात
नहला देती है पसीने की धूप को''' ...वाह
वाक़ई कोई सहेज ले सावन तो कभी सूखा नहीं पड़ेगा मन उपवन में
जवाब देंहटाएंबेहतरीन रचना
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