सोमवार, अक्टूबर 20, 2025

अंधेरों के ख़िलाफ़

अंधेरों के ख़िलाफ़
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प्रारम्भ में 
एक मिट्टी का दिया
जला होगा
जो अंधेरों से लड़ता हुआ 
उजाले को दूर दूर तक
फैलाता रहा होगा

फिर
संवेदनाओं के चंगुल में फंसकर
जनमत के बाजार में
नीलाम होने लगा
जूझता रहा आंधियों से
लेकिन
नहीं ख़त्म होने दी
अपनी टिमटिमाहट

उजाला
फूलों की पंखुड़ियों पर
लिख रहा है
अपने होने का सच

मिट्टी का दिया
आज भी उजाले को 
मुट्ठियों में भर भर कर 
घर घर पहुंचा रहा है
ताकि मनुष्य
लड़ सकें 
अंधेरों के ख़िलाफ़---

◆ज्योति खरे

दीपावली की हार्दिक शुभकामनाएं

13 टिप्‍पणियां:

  1. वाह-वाह क्या बात है सर शानदार अभिव्यक्ति।
    सादर प्रणाम सर।
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    नमस्ते,
    आपकी लिखी रचना मंगलवार २२ अक्टूबर २०२५ के लिए साझा की गयी है
    पांच लिंकों का आनंद पर...
    आप भी सादर आमंत्रित हैं।
    सादर
    धन्यवाद।

    जवाब देंहटाएं
  2. अनुपम रचना, शुभ दीपावली!!

    जवाब देंहटाएं