रविवार, दिसंबर 02, 2012

यूकेलिप्टस-------------

यूकेलिप्टस-------------
एक दिन तुम और मैं
शाम को टहलते
उंगलियां फसाये
उंगलियों में
निकल गये शहर के बाहर-----

तुमने पूछा
क्या होता है शिलालेख
मैने निकाली तुम्हारे बालों से
हेयरपिन
लिखा यूकेलिप्टस के तने पर
तुम्हारा नाम----

तुमने फिर पूछा
इतिहास क्या होता है
मैने चूम लिया तुम्हारा माथा-----

खो गये हम
अजंता की गुफाओं में
थिरकने लगे
खजुराहो के मंदिर में
लिखते रहे उंगलियों से
शिलालेख
बनाते रहे इतिहास--------

आ गये अपनी जमीन पर
चेतना की सतह पर
अस्तित्व के मौजूदा घर पर-----

घर आकर देखा था दर्पण
उभरी थी मेरे चेहरे पर
लिपिस्टिक से बनी लकीरें
मेरा चेहरा शिलालेख हो गया था
बैल्बट्स की मैरुन बिंदी
चिपक आयी थी
मेरी फटी कालर में
इतिहास का कोई घटना चक्र बनकर-------

अब खोज रहा हूं इतिहास
पढ़ना चाहता हूं शिलालेख----

अकेला खड़ा हूं
जहां बनाया था इतिहास 
लिखा था शिलालेख
इस जमीन पर
खोज रहा हूं ऐतिहासिक क्षण-------

लोग कहते हैं
यूकेलिप्टस पी जाता है
सतह तक का पानी
सुखा देता है जमीन की उर्वरा-------

शायद यही हुआ है
मिट गया शिलालेख
खो गया इतिहास-------

अब फिर लिख सकेंगे इतिहास
अपनी जमीन का---

क्या तुम कभी
देखती हो मुझे
अपने मौजूदा जीवन के आईने में
जब कभी तुम्हारी
बिंदी,लिपिस्टिक
छूट जाती है
इतिहास होते क्षणों में---------

            "ज्योति खरे"
   



 
  



27 टिप्‍पणियां:

  1. ब्लॉगर Saras ने कहा…आपकी हर रचना अंत:स तक उतर जाती है ..और छू जाती है कोई ऐसा कोना जो बहुत जिया हुआ सा लगता है .....बहुत सुन्द-----

    2 दिसम्बर 2012 1:55 pm

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  2. papa aaj blog ki shila lekha par likha diy ....bahut accha hai.......

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  3. अति सुन्दर। अत्यंत रोमैंटिक। दिल में गहरे तक उतर जाने वाली भावपूर्ण कविता।

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  4. लेखन वो ही सार्थक होता है जो दिल से निकले और आपका लेखन एक नवीनता लिये बहुत कुछ कह जाता है जो कुछ देर सोचने को मजबूर करता रहता है………इतने गहन विचारों के लिये बधाई।

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  5. ati sundar....rachna wali uttam hai jo sach ki jami par khadi antar man tak apni jare fela de....aap isme kamyaab hote hai ..badhai....

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  6. छू गए आपके शिलालेख और इतिहास !
    बहुत सुंदर

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  7. wah sir lajavaab h aap
    har field ke maje hue khiladi.......

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  8. wah bahut shandar rachna aapki rachnayaen hamesha jeevan ki ghatnaon se judi rehti hai-----aapko badhai

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  9. vakai yukeliptas pee jata hai satah ka pani--pyar main bhi easa hi hota hai----bahut shandar bhawuk bhaw rachna main piroye hain aapney---bahut khub

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  10. वास्तव में मानव की प्रवृत्ति ही उसे जीवंत भी बनाती है और उसके अस्तित्त्व को मिटा भी देती है

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  11. ह्रदय को छूती अनुभूतियाँ ...!शायद ऐसा ही होता है कि हमारा बनाया इतिहास दफ़न हो जाता है और हम यथार्थ के धरातल पर अपनी पहचान खोजने लगते है .समय की निर्मम धारा अपने साथ सारी कहानियाँ .शिलालेख ,और जुड़ा इतिहास बहा ले जाती है।शायद खुद में समां लेती है। पता नहीं। हा --ज्योति खरेजी मन की गहराइयों में आसानी से उतर जाते है।।।।

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  12. ह्रदय को छूती अनुभूतियाँ ...!शायद ऐसा ही होता है कि हमारा बनाया इतिहास दफ़न हो जाता है और हम यथार्थ के धरातल पर अपनी पहचान खोजने लगते है .समय की निर्मम धारा अपने साथ सारी कहानियाँ .शिलालेख ,और जुड़ा इतिहास बहा ले जाती है।शायद खुद में समां लेती है। पता नहीं। हा --ज्योति खरेजी मन की गहराइयों में आसानी से उतर जाते है।।।।

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  13. ह्रदय को छूती अनुभूतियाँ ...!शायद ऐसा ही होता है कि हमारा बनाया इतिहास दफ़न हो जाता है और हम यथार्थ के धरातल पर अपनी पहचान खोजने लगते है .समय की निर्मम धारा अपने साथ सारी कहानियाँ .शिलालेख ,और जुड़ा इतिहास बहा ले जाती है।शायद खुद में समां लेती है। पता नहीं। हा --ज्योति खरेजी मन की गहराइयों में आसानी से उतर जाते है।।।।

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  14. ह्रदय को छूती अनुभूतियाँ ...!शायद ऐसा ही होता है कि हमारा बनाया इतिहास दफ़न हो जाता है और हम यथार्थ के धरातल पर अपनी पहचान खोजने लगते है .समय की निर्मम धारा अपने साथ सारी कहानियाँ .शिलालेख ,और जुड़ा इतिहास बहा ले जाती है।शायद खुद में समां लेती है। पता नहीं। हा --ज्योति खरेजी मन की गहराइयों में आसानी से उतर जाते है।।।।

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  15. ह्रदय को छूती अनुभूतियाँ ...!शायद ऐसा ही होता है कि हमारा बनाया इतिहास दफ़न हो जाता है और हम यथार्थ के धरातल पर अपनी पहचान खोजने लगते है .समय की निर्मम धारा अपने साथ सारी कहानियाँ .शिलालेख ,और जुड़ा इतिहास बहा ले जाती है।शायद खुद में समां लेती है। पता नहीं। हा --ज्योति खरेजी मन की गहराइयों में आसानी से उतर जाते है।।।।

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  16. आपके ब्लाग पर आकर अच्छा लगा | अभिव्यक्ती में नवीनता तो पाई ही, साथ -साथ जीवन के यथार्थ से जुड़े खूबसूरत पल सजीव हो उठे |
    बधाई तथा शुभकामनाएँ |

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  17. आ गये अपनी जमीन पर
    चेतना की सतह पर
    अस्तित्व के मौजूदा घर पर-badhiya abhivykti

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  18. गहन भाव लिये उत्‍कृष्‍ट अभिव्‍यक्ति

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  19. उत्‍कृष्‍ट अनुभूतियाँ

    बहुत सुंदर बधाई तथा शुभकामनाएँ

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  20. इतिहास को भी संजोना पड़ता है...या उसे पुनः लिखना...पुनर्जीवित कर दिया इतिहास...आपने...

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