सोमवार, दिसंबर 10, 2012

सपनों ने

सपनों ने
गली की पुलिया पर बैठकर
यह तय किया
अब नहीं दिखेंगे-------

सपने कोलाहल में
कैसे जीवित रह पायेंगे
यह सोचकर
सपनों ने छोड़ दिया है
भीड़ में रहना-------

सपनों ने कभी नहीं चाहा
कि दंगा हो
पैदा हो नफरत
सपने तो चाहते हैं
रहना अलहदा
हर बुरे ख्याल से--------

सपने
सदभाव की आँखों में
रहेंगे
वहीं तय करेंगे
दिखें या ना दिखें---------

"ज्योति खरे"

7 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत ही सुन्दर ....सपनों सी प्यारी... सहज.... चाह...:)

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  2. सपनों ने कभी नहीं चाहा
    कि दंगा हो
    पैदा हो नफरत
    सपने तो चाहते हैं
    रहना अलहदा
    हर बुरे ख्याल से--------
    पुलिया पर बैठ सपने देखने का बिम्ब सुन्दर और बड़ा ही सहज लगा ... बधाई

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  3. सपनों ने कभी नहीं चाहा
    कि दंगा हो
    पैदा हो नफरत
    सपने तो चाहते हैं
    रहना अलहदा
    हर बुरे ख्याल से--------
    पुलिया पर बैठ सपने देखने का बिम्ब सुन्दर और बड़ा ही सहज लगा ... बधाई

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  4. सपनों ने कभी नहीं चाहा
    कि दंगा हो
    पैदा हो नफरत
    सपने तो चाहते हैं
    रहना अलहदा
    हर बुरे ख्याल से--------

    बिलकुल सही लिखे हैं आप .......... सहमत हूँ !!

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  5. बहुत खूब .सपने भी बोलते हैं सपने भी सोचते हैं

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  6. बहुत खूब.. सपनो की भी अपनी चाहत होती है

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  7. बहुत सुंदर !
    सपनों सी कोमल भावना, कोमल चाह !
    ~सादर !

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