कुछ रिश्ते
कुछ लकड़ियां--
टांग देती हैं
खूटी पर सपने
बीनकर लायीं लकड़ियों से
फिर जलाती हैं "ज्योति खरे"
माँ की सम्पूर्णता को व्यक्त करते हुए बेहद सुन्दर प्रस्तुति !!
जवाब देंहटाएंवाह !
जवाब देंहटाएं☆★☆★☆
कि कोई आयेगा
और कहेगा
अम्मा तुम्हे लेने आया हूं
घर चलो
बच्चों को लोरियां सुनाने------
आऽऽह…!
बहुत मार्मिक !!
आदरणीय ज्योति खरे जी
सुंदर भावपूर्ण रचना के लिए हृदय से साधुवाद स्वीकार करें ।
शुभकामनाओं-मंगलकामनाओं सहित...
-राजेन्द्र स्वर्णकार
bahut umda
जवाब देंहटाएंबीनकर लायीं लकड़ियों स फिर जलाती हैं विश्वास का चूल्हा ... maarmik prastuti
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर मार्मिक प्रस्तुति ...!
जवाब देंहटाएंRECENT POST आम बस तुम आम हो
बेहद सुन्दर......
जवाब देंहटाएंमार्मिक ... कितना विस्वास है माँ को ... जो आशा बांधे रखती है .. अंत तक भी सिखाती है जीवन जीने का ढंग ...
जवाब देंहटाएंbahut khoob
जवाब देंहटाएंउम्मीद पर ही जिंदगी चलती रहती है...
जवाब देंहटाएंभावपूर्ण रचना....बहुत बहुत बधाई...
जवाब देंहटाएंनयी पोस्ट@
आप की जब थी जरुरत आपने धोखा दिया(नई रिकार्डिंग)
बहुत मार्मिक रचना है ज्योति भाई ! बधाई !
जवाब देंहटाएंइसी आशा पर अंत तक जिएगी ,माँ है न !
जवाब देंहटाएंजी नमस्ते,
जवाब देंहटाएंआपकी लिखी रचना हमारे सोमवारीय विशेषांक
२७ अप्रैल २०२० के लिए साझा की गयी है
पांच लिंकों का आनंद पर...
आप भी सादर आमंत्रित हैं...धन्यवाद।
खूबसूरत ! खूबसूरत प्रस्तुति आदरणीय ! बहुत सुंदर ।
जवाब देंहटाएंबीनकर लाती हैं
जवाब देंहटाएंजंगल से
कुछ सपने
कुछ रिश्ते
कुछ लकड़ियां--
टांग देती हैं
खूटी पर सपने
सहेजकर रखती हैं आले में
बिखरे रिश्ते
डिभरी की टिमटिमाहट मेँ
टटोलती हैं स्मृतियां--बहुत ही सुंदर और हृदय स्पर्शी सृजन सर
उम्दा प्रस्तुति !
जवाब देंहटाएंसुरक्षित रहें, स्वस्थ रहें