करवा चौथ का चाँद
उसी दिन रख दिया था
हथेली पर तुम्हारे
जिस दिन
मेरे आवारापन को
स्वीकारा था तुमने---------
सूरज से चमकते गालों पर
पपड़ाए होंठों पर
रख दिये थे
कई कई चाँद----
बदतमीज़ कहते
भाग रही थी तुम
पकड़ लिया था
चुनरी का कोना
झीना,झपटी में
फट गया कोना-----
करवा चौथ का चाँद
उसी दिन रख दिया था
हथेली पर तुम्हारे
जिस दिन---
विरोधों के बावजूद
ओढ़ ली थी तुमने
उधारी में खरीदी
मेरे अस्तित्व की चुनरी--------
अब
अपने प्रेम के आँगन में
खड़ी होकर
आटे की चलनी से
क्यों देखती हो चाँद-------
तुम्हारी मुट्ठी में कैद है
तुम्हारा चाँद--------
"ज्योति खरे"
(उंगलियां कांपती क्यों हैं-----से )
उसी दिन रख दिया था
हथेली पर तुम्हारे
जिस दिन
मेरे आवारापन को
स्वीकारा था तुमने---------
सूरज से चमकते गालों पर
पपड़ाए होंठों पर
रख दिये थे
कई कई चाँद----
बदतमीज़ कहते
भाग रही थी तुम
पकड़ लिया था
चुनरी का कोना
झीना,झपटी में
फट गया कोना-----
करवा चौथ का चाँद
उसी दिन रख दिया था
हथेली पर तुम्हारे
जिस दिन---
विरोधों के बावजूद
ओढ़ ली थी तुमने
उधारी में खरीदी
मेरे अस्तित्व की चुनरी--------
अब
अपने प्रेम के आँगन में
खड़ी होकर
आटे की चलनी से
क्यों देखती हो चाँद-------
तुम्हारी मुट्ठी में कैद है
तुम्हारा चाँद--------
"ज्योति खरे"
(उंगलियां कांपती क्यों हैं-----से )
सहज स्वाभाविक प्यारी अभिव्यक्ति
जवाब देंहटाएंpyar ki behad pyari bhawna
जवाब देंहटाएंBahut bahut sunder aur hrudayasparshi..sadar vandan
जवाब देंहटाएंकरवा चौथ का चाँद
जवाब देंहटाएंउसी दिन रख दिया था
हथेली पर तुम्हारे
जिस दिन
मेरे आवारापन को
स्वीकारा था तुमने
(भावुक )