गुरुवार, फ़रवरी 21, 2013

खून *****


हंसते हुये घर से निकले
गली गली से गुजरे
चौराहे पर
सब अलग अलग
गलियों से आकर मिले----

हवा
खून से सने पांव पांव
बिना आहट के
टकरायी
हंसी लाल रंग के फब्बारे की
शक्ल में उछलती
जमीन पर गिर पड़ी-----

खून से लथपथ चेहरों के ऊपर
चाहतों की आंखें बिछ गयी हैं

मुस्तैद है
चौराहों पर कैमरे की आंख
खींच रही है फोटो
पहले निगेटिव
फिर पाजिटिव
निगेटिव,पाजिटिव के बीच
फैले गूंगेपन में
चीख रहा है
शहर बेआवाज

फोटो गवाह है की शहर चीख रहा है
गूंगी फोटो अख़बार के मुखप्रष्ठ पर
चीख रही है
चीख रहा है शब्द शब्द
सारा खेल
खून बहाने का है----------

"ज्योति खरे"
 






जमीन पर लथपथ
 



22 टिप्‍पणियां:

  1. ऐसे में ही अन्दर से चीखें निकलती हैं...लेकिन सिर्फ अंतर में घुट कर रह जाती हैं.....दुखद ...!

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  2. फोटो गवाह है की शहर चीख रहा है
    गूंगी फोटो अख़बार के मुखप्रष्ठ पर
    चीख रही है
    चीख रहा है शब्द शब्द
    सारा खेल
    खून बहाने का है----------
    कटु सत्‍य कहा है आपने इस अभिव्‍यक्ति में

    जवाब देंहटाएं
  3. बहुत परिस्थितिजन्‍य कविता। नेगेटिव पाजिटिव के बीच में लुट गई धरती।

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  4. संवेदनशीलता की सच्ची अभिव्यक्ति, आभार

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  5. सामयिक रचना ... ये चीखें अक्सर खून से रंगे लम्हों को नज़र नहीं आती ...

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    धन्यवाद
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  7. तकलीफदेह ...
    शुभकामनायें आपको !

    जवाब देंहटाएं
  8. फोटो गवाह है की शहर चीख रहा है
    गूंगी फोटो अख़बार के मुखप्रष्ठ पर
    चीख रही है
    चीख रहा है शब्द शब्द
    सारा खेल
    खून बहाने का है----------

    अखबार का मुख्यपृष्ठ हो या तस्वीरों में कैद लहू-लहू का खेल, सब गवाह भी हैं और इसमें शामिल भी... वक़्त ने जैसे दरिन्दगी को अपने काबू में कर लिया है. लेकिन शहर की चीख या इंसान की...कोई नहीं सुनता. बहुत सशक्त रचना, शुभकामनाएँ.

    जवाब देंहटाएं
  9. फोटो गवाह है की शहर चीख रहा है
    गूंगी फोटो अख़बार के मुखप्रष्ठ पर
    चीख रही है
    चीख रहा है शब्द शब्द
    सारा खेल
    खून बहाने का है-----
    समसामयिक घटनाओं को व्यक्त करती व दर्द पिरोए सुंदर रचना
    मेरे ब्लॉग के समर्थन के लिए आभार
    भ्रमर ५

    जवाब देंहटाएं
  10. फोटो गवाह है की शहर चीख रहा है
    गूंगी फोटो अख़बार के मुखप्रष्ठ पर
    चीख रही है
    चीख रहा है शब्द शब्द
    सारा खेल
    खून बहाने का है----------

    क्या बात है ...
    कैमरे के माध्यम से बहुत ही सशक्त रचना की आपने ...

    बधाई ...!!

    जवाब देंहटाएं
  11. फोटो की गवाही... खून से लथपथ ज़िंदगी... खून-खून का खेल जारी है. बहुत संवेदनशील रचना, बधाई.

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  12. गूंगी फोटो अख़बार के मुखपृष्ठ पर
    चीख रही है

    वाकई ये मौन चीखें हैं जो अंदर ही अन्दर लोगों को हिलाती तो है पर ज्वालामुखी होकर विस्फोट होने तक इंतज़ार करना होगा ....तभी ये खूनी खेल बंद होगा

    जवाब देंहटाएं
  13. फोटो गवाह है की शहर चीख रहा है
    गूंगी फोटो अख़बार के मुखप्रष्ठ पर
    चीख रही है
    चीख रहा है शब्द शब्द
    सारा खेल
    खून बहाने का है----------

    ...बहुत संवेदनशील और सटीक अभिव्यक्ति...

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  14. आपकी इस उत्कृष्ट प्रविष्टि की चर्चा कल मंगलवार 5/3/13 को चर्चा मंच पर राजेश कुमारी द्वारा की जायेगी आपका स्वागत है|

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  15. सर्वकालिक सत्य को उद्घाटित करती कविता।

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  16. सर्वकालिक सत्य को उद्घाटित करती कविता।

    जवाब देंहटाएं
  17. गूंगी फोटो चीख रही है , इस देश का हर संवेदनशील इंसान भी ऐसे ही गूंगा बना चीख रहा है , जो चीख रहे हैं , उनकी संवेदना ढूंढनी पड़ेगी !

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