हंसते हुये घर से निकले
गली गली से गुजरे
चौराहे पर
सब अलग अलग
गलियों से आकर मिले----
हवा
खून से सने पांव पांव
बिना आहट के
टकरायी
हंसी लाल रंग के फब्बारे की
शक्ल में उछलती
जमीन पर गिर पड़ी-----
खून से लथपथ चेहरों के ऊपर
चाहतों की आंखें बिछ गयी हैं
मुस्तैद है
चौराहों पर कैमरे की आंख
खींच रही है फोटो
पहले निगेटिव
फिर पाजिटिव
निगेटिव,पाजिटिव के बीच
फैले गूंगेपन में
चीख रहा है
शहर बेआवाज
फोटो गवाह है की शहर चीख रहा है
गूंगी फोटो अख़बार के मुखप्रष्ठ पर
चीख रही है
चीख रहा है शब्द शब्द
सारा खेल
खून बहाने का है----------
"ज्योति खरे"
जमीन पर लथपथ
खौफनाक मंज़र शहरों का ...
जवाब देंहटाएंऐसे में ही अन्दर से चीखें निकलती हैं...लेकिन सिर्फ अंतर में घुट कर रह जाती हैं.....दुखद ...!
जवाब देंहटाएंफोटो गवाह है की शहर चीख रहा है
जवाब देंहटाएंगूंगी फोटो अख़बार के मुखप्रष्ठ पर
चीख रही है
चीख रहा है शब्द शब्द
सारा खेल
खून बहाने का है----------
कटु सत्य कहा है आपने इस अभिव्यक्ति में
बहुत परिस्थितिजन्य कविता। नेगेटिव पाजिटिव के बीच में लुट गई धरती।
जवाब देंहटाएंसंवेदनशीलता की सच्ची अभिव्यक्ति, आभार
जवाब देंहटाएंसभी का आभार
जवाब देंहटाएंसामयिक रचना ... ये चीखें अक्सर खून से रंगे लम्हों को नज़र नहीं आती ...
जवाब देंहटाएंBlogVarta.com पहला हिंदी ब्लोग्गेर्स का मंच है जो ब्लॉग एग्रेगेटर के साथ साथ हिंदी कम्युनिटी वेबसाइट भी है! आज ही सदस्य बनें और अपना ब्लॉग जोड़ें!
जवाब देंहटाएंधन्यवाद
www.blogvarta.com
तकलीफदेह ...
जवाब देंहटाएंशुभकामनायें आपको !
फोटो गवाह है की शहर चीख रहा है
जवाब देंहटाएंगूंगी फोटो अख़बार के मुखप्रष्ठ पर
चीख रही है
चीख रहा है शब्द शब्द
सारा खेल
खून बहाने का है----------
अखबार का मुख्यपृष्ठ हो या तस्वीरों में कैद लहू-लहू का खेल, सब गवाह भी हैं और इसमें शामिल भी... वक़्त ने जैसे दरिन्दगी को अपने काबू में कर लिया है. लेकिन शहर की चीख या इंसान की...कोई नहीं सुनता. बहुत सशक्त रचना, शुभकामनाएँ.
दर्द मयी रचना
जवाब देंहटाएंये कैसी मोहब्बत है
फोटो गवाह है की शहर चीख रहा है
जवाब देंहटाएंगूंगी फोटो अख़बार के मुखप्रष्ठ पर
चीख रही है
चीख रहा है शब्द शब्द
सारा खेल
खून बहाने का है-----
समसामयिक घटनाओं को व्यक्त करती व दर्द पिरोए सुंदर रचना
मेरे ब्लॉग के समर्थन के लिए आभार
भ्रमर ५
फोटो गवाह है की शहर चीख रहा है
जवाब देंहटाएंगूंगी फोटो अख़बार के मुखप्रष्ठ पर
चीख रही है
चीख रहा है शब्द शब्द
सारा खेल
खून बहाने का है----------
क्या बात है ...
कैमरे के माध्यम से बहुत ही सशक्त रचना की आपने ...
बधाई ...!!
फोटो की गवाही... खून से लथपथ ज़िंदगी... खून-खून का खेल जारी है. बहुत संवेदनशील रचना, बधाई.
जवाब देंहटाएंगूंगी फोटो अख़बार के मुखपृष्ठ पर
जवाब देंहटाएंचीख रही है
वाकई ये मौन चीखें हैं जो अंदर ही अन्दर लोगों को हिलाती तो है पर ज्वालामुखी होकर विस्फोट होने तक इंतज़ार करना होगा ....तभी ये खूनी खेल बंद होगा
कटु सत्य संवेदनशील रचना
जवाब देंहटाएंaaj ke haalato par sateek Rachna...
जवाब देंहटाएंफोटो गवाह है की शहर चीख रहा है
जवाब देंहटाएंगूंगी फोटो अख़बार के मुखप्रष्ठ पर
चीख रही है
चीख रहा है शब्द शब्द
सारा खेल
खून बहाने का है----------
...बहुत संवेदनशील और सटीक अभिव्यक्ति...
आपकी इस उत्कृष्ट प्रविष्टि की चर्चा कल मंगलवार 5/3/13 को चर्चा मंच पर राजेश कुमारी द्वारा की जायेगी आपका स्वागत है|
जवाब देंहटाएंसर्वकालिक सत्य को उद्घाटित करती कविता।
जवाब देंहटाएंसर्वकालिक सत्य को उद्घाटित करती कविता।
जवाब देंहटाएंगूंगी फोटो चीख रही है , इस देश का हर संवेदनशील इंसान भी ऐसे ही गूंगा बना चीख रहा है , जो चीख रहे हैं , उनकी संवेदना ढूंढनी पड़ेगी !
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