बुधवार, मार्च 06, 2013

संदर्भ महिला दिवस---- उपेक्षा के दौर से गुजर रही हैं मजदूर नारियां


                             उपेक्षा के दौर से गुजर रही हैं मजदूर नारियां 
                 
नारी की छबि एक बार फिर इस प्रश्न को जन्म दे रही है कि,क्या भारतीय नारी संस्कारों में रची बसी परम्परा का निर्वाह करने वाली नारी है,या वह नारी है जो अपने संस्कारों को कंधे पर लादे मजदूरी का जीवन जी रही है।परम्परागत भारतीय नारी और दूसरी ओर बराबरी के दर्जे का दावा करने वाली आधुनिक भारतीय नारी हैं, पर इनके बीच है हमारी मजबूर मजदूर उपेक्षा की शिकार एक अलग छबि वाली नारी,इस नारी के विषय में कोई बात नहीं करता है।
नारी की नियति सिर्फ सहते रहना है-यह धारणा गलत है,इस धारणा को बदलने की आवाज चरों ओर उठ रही है,आज की नारी इस धारणा से कुछ हद तक उबरी भी है।नारी किसी भी स्तर पर दबे या अन्याय सहे यह तेजी से बदल रहे समय में उचित नहीं है,लेकिन एक बात आवश्यक है कि इस बदलते परिवेश में इतना तो काम होना चाहिये कि मजदूर नारियों की स्थितियों को भी बदलने का कार्य होना चाहिये।
एक ही देश में,एक ही वातावरण में,एक जैसी सामाजिक स्थितियों में जीने वाली नारियों में इतनी भिन्नता क्यों?
वर्तमान में नारियों के पांच वर्ग हो गये हैं-----
१-वे नारियां जो पुर्णतः संपन्न हैं न नौकरी करती हैं न घर के काम काज
२-वे नारियां जो अपनी आर्थिक स्थिति को ठीक रखने के लिये नौकरी करती हैं अथवा सिलाई,बुनाई,ब्यूटी क्लीनिक आदि
३-वे नारियां जो केवल अपना समय व्यतीत करने के लिये साज श्रृंगार के लिये,अधिक धन कमाने के लिये नौकरी करती हैं
४-वे नारियां जो केवल गृहस्थी से बंधीं हैं
५-वे नारियां जो अपना,अपने बच्चों का पेट भरने,घर को चलाने, मजदूरी करती हैं।
ये नारियां हमारे सामाजिक वातावरण में घूमती हुई नारियां हैं।
पांचवे वर्ग की नारी आर्थिक और मानसिक स्थिति से कमजोर नारी है,ऐसी नारियों का जीवन प्रतारणाओं से भरा होता है,कुंठा और हीनता से जीवन जीने को विवश ये मजदूर नारियां तथाकथित नारी स्वतंत्रता अथवा नारी मुक्ति का क्या मूल्य जाने,इन्हे तो अपने पेट के लिये मेहनत मजदूरी करते हुये जिन्दगी गुजारना पड़ती है।
नेशनल पर्सपेक्टिव प्लान फार विमेन,सरकार के प्रयासों से तैयार एक योजना है,जिसे बनाने में महिला संगठनों की भागीदारी है।इसको बनाने के पहले महिलाओं की समस्या को सात खण्डों में बांटा गया है,रोजगार,स्वास्थ,शिक्षा,संस्कृति,कानून,सामाजिक उत्पीडन,ग्रामीण विकास तथा राजनीती में हिस्सेदारी।
वूमन लिबर्टी अर्थात नारी मुक्ति की चर्चायें चरों ओर सुनाई देती हैं,बड़ी बड़ी संस्थायें नारी स्वतंत्रता की मांग करती हैं,स्वयं नारियां नारी मुक्ति के लिये आवाज उठाती हैं,आन्दोलन करती हैं,सभायें करती हैं,बडे बडे बेनर लेकर नारे लगाती हैं।
विचारणीय प्रश्न यह है कि मजदूरी कर जीवन चलाने वाली नारी अपना कोई महत्त्व नहीं रखती,इसके लिये क्या हो रहा है,क्या देश के महिला संगठन इनके उत्थान के लिये कभी आवाज उठायेंगे।
आज भी अधिकांश नारियां मजदूरी करती हैं जो उपनगर या गाँव में रहती हैं और निम्न मध्यम वर्गीय परिवारों की हैं,उनकी मजदूरी के पीछे भी स्वतंत्र अस्तित्व की चाह उतनी ही है, जितना आधुनिक सामाजिक जीवन जीने वाली नारियों में है।गाँव में ज्यादातर नारियां गरीब परिवारों की हैं जो मजदूरों के रूप में खेतों पर,शहर में रेजाओं के रूप में,और कई अन्य जगह काम करती हैं।जी जान लगाकर दिनभर मेहनत करती हैं, पर वेतन पुरषों की तुलना में कम मिलता है।पिछले तीन दशकों में बनी अधिकांश कल्याणकारी योजनाओं के ज्यादातर फायदे उन्हीं नारियों के लिये हैं, जो उच्च आय में हैं,उच्च शिक्षा प्राप्त हैं।
उच्च वर्ग की नारियां मुक्त से ज्यादा मुक्त हैं ,किती पार्टियाँ करती हैं,क्लबों मैं डांस करती हैं,फैशन में भाग लेती हैं,इनकी संख्या कितनी है,क्या इन्ही गिनी चुनी नारियों की चर्चा होती है,सही मायने मैं तो चर्चा मजदूर नारियों की होनी चाहिये।
महिला दिवस हर वर्ष आता है और चला जाता है,मजदूर नारियां ज्यों की त्यों हैं,नारी मुक्ति की बात तभी सार्थक होगी कि जब "महिला मजदूर"के उत्थान की बात हो,वर्ना ऐसे "महिला दिवस"का क्या ओचित्य जिसमें केवल स्वार्थ हो।

"ज्योति खरे"                                      

23 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत ही विचारपरक आलेख ज्‍योति जी। मजदूर नारियों के बारे में नारी दिवस है ही नहीं।

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  2. सचमुच जब हम नारी मुक्ति की बात करते हैं तो केवल घर में रहने वाली महिलाएँ ही हमारी नजर में होती हैं लेकिन जो महिलाएँ धूप में पसीना बहाती हैं और रात को शराबी पतियों की लात खाती हैं उनके लिए किसका ध्यान है?

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  3. विचारपरक आलेख जो सोचने पर विवश करता है..बधाई

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  4. विचारणीय बात ..... ऐसी स्त्रीयों का सशक्तीकरण आवश्यक है....

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  5. इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.

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  6. इस दिशा में बहुत कुछ किए जाने की ज़रूरत है, खासकर प्रशासनिक ढांचा भी मानव-हितकारी बने।

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  7. बहुत ही सार्थक आलेख,विचारणीय विषय.

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  8. आप सभी मित्रों का ह्रदय से आभार

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  9. लाजवाब प्रस्तुति...बहुत बहुत बधाई...
    महाशिवरात्रि की हार्दिक शुभकामनाएँ...

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  10. बहुत सुन्दर प्रस्तुति!

    महाशिवरात्रि की हार्दिक शुभकामनाएँ !
    सादर

    आज की मेरी नई रचना आपके विचारो के इंतजार में
    अर्ज सुनिये

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  11. महिला दिवस पर महिलाओं की मुख्य समस्याओं को इंगित करते हुए अच्छा विचार विश्लेषण.

    महाशिवरात्रि की शुभकामनायें.

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  12. सार्थक चिंतन करती हुई आपकी पोस्ट ... नारी मुक्ति कमरे की चारदीवारी में बैठ कर नहीं हो सकती ...बाहर निकल के रोज़ मर्रा के जीवन से जूझती नारी का शाशक्तिकरण जरूरी है ...

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  13. असंगठित होने के कारण ही मजदूरी करने वाली स्त्रियों की सुध नहीं ली जाती ....अजीब सी लगे ..परन्तु सत्य यही है कि 'वोट-बैंक' बने बिना राजनैतिक हलके में कोई सुनवाई नहीं है ...जहाँ तक धनी और अकाम-काजी महिलाओं का प्रश्न है ....बंद किवाड़ों के पीछे वे कितना आदर पाती हैं ..ये संदेहास्पद विषय है ...मैं ये बात स्पष्ट कर दूँ कि सभी महिलायें समाज और परिवार में प्रताड़ित की जाती हों ...ऐसा बिलकुल भी नहीं है ...परन्तु हर वर्ग की स्त्री प्रताड़ना का शिकार हो रही है ..ये भी सच है

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  14. आपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" में शुक्रवार 01 मई 2020 को साझा की गयी है......... पाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

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