ओ मेरी सुबह
सींच देती हो जड़ें
बहने लगती हो धमनियों में
कर देती हो फूलों के रंग चटक
पोंछ देती हो
एक-एक पत्तियां-------
आईने की तरह
चमकने लगती है नदी
पहाड़ गोरा हो जाता है
निकल पड़ते हैं पंछी
दाना चुगने--------
ओ मेरी सुबह
पहुंच जाती हो
घर-घर
बिखेर देती हो उदारता से
शुभदिन की कामनायें------
ओ मेरी सुबह
कहां से लाती हो
इतना उजलापन--------
"ज्योति खरे"
बहुत सुन्दर प्रकृति चित्रण
जवाब देंहटाएंअच्छी कविता है
जवाब देंहटाएंआईने की तरह
जवाब देंहटाएंचमकने लगती है नदी
पहाड़ गोरा हो जाता है
निकल पड़ते हैं पंछी
दाना चुगने--------
सुन्दर सा दृश्य घूम गया आँखों के सामने... बहुत अच्छी रचना... आभार
subah ka sundar chitran..
जवाब देंहटाएंबहुत खूब ... प्राकृति की दें है ऐसी सुबह ...
जवाब देंहटाएंसुन्दर चित्रण ...
अति सुन्दर..
जवाब देंहटाएंप्रकृति का बहुत सुन्दर चित्रण...
जवाब देंहटाएं:-)
प्रकृति का बहुत सुन्दर चित्रण...
जवाब देंहटाएं:-)
बनी रहे दिन की सार्थक शुरुआत.....
जवाब देंहटाएंओ मेरी सुबह
जवाब देंहटाएंकहां से लाती हो
इतना उजलापन--------suraj se na.....
सुबह का अभिसार
जवाब देंहटाएंप्रकृति विस्तार.........सुन्दर
ये कौन चित्रकार है ...??
जवाब देंहटाएंशुभकामनायें आपको !
बहुत उम्दा प्रस्तुति...बहुत बहुत बधाई...
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर भोर का चित्रण .
जवाब देंहटाएंसबकी सुबह
जवाब देंहटाएंआपकी सुबह
जैसी हो जाये
धुंद कोहरे छ्टे यूँ
उजलेपन में
खो जाये !
बहुत सुंदर !
बहुत सुन्दर बस ये सुबह बस युही बनी रहे
जवाब देंहटाएंये कैसी मोहब्बत है
bahut sundar subah ka varnan ...badhai :-)
जवाब देंहटाएंaap mein kuchh to baat hai
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