कंक्रीट के जंगल में
जो दिख रहें हैं
जो दिख रहें हैं
सतरंगी खिले हुए
दर्दीले फूल
अनगिनत आंख से टपके
कतरे से खिलें हैं ---
फाड़कर चले जाते थे जो तुम
आहटों के रेशमी पर्दे
आश्वासनों कि जंग लगी सुई से
रोज ही सिले हैं---
जहरीली हवाओं से कहीं
बुझ ना जाए
आशाओं की डिभरी
चढ़ी है भावनाओं की सांकल
दरवाजे इसीलिए नहीं खुले हैं---
पवित्र तो कतई नहीं हो
मनाने चौखट पर नहीं आना
बदबूदार हो जाएगा वातावरण
बदबूदार हो जाएगा वातावरण
हमें मालूम है
कलफ किए तुम्हारे
सफ़ेद पीले कुर्ते
गंदे पानी से धुले हैं------
"ज्योति खरे"
चित्र
गूगल से साभार
हमें मालूम है
जवाब देंहटाएंकलफ लगे तुम्हारे सफ़ेद और पीले कुर्ते
गंदे पानी से धुले हैं...... इस समय के सन्दर्भ में बिल्कुल सही और सटीक रचना .....
हमें मालूम है
जवाब देंहटाएंकलफ लगे तुम्हारे सफ़ेद और पीले कुर्ते
गंदे पानी से धुले हैं...... इस समय के सन्दर्भ में बिल्कुल सही और सटीक रचना .....
बढ़िया है आदरणीय-
जवाब देंहटाएंबधाई स्वीकारें-
बहुत खूबसूरत, शानदार !
जवाब देंहटाएंSUNDAR RACHNA ,,
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर और सार्थक रचना।
जवाब देंहटाएंइसे साझा करने के लिए आपका धन्यवाद।
फाड़कर चले जाते थे जो तुम
जवाब देंहटाएंआहटों के रेशमी पर्दे
आश्वासनों कि जंग लगी सुई से
रोज ही सिले हैं--
.... वाह .....मार्मिक ...!!!!
बहुत बढ़िया.....
जवाब देंहटाएंबेहद सटीक और मार्मिक....
सादर
अनु
बहुत ही बढ़ियाँ रचना...
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर!
जवाब देंहटाएंभावनाओं की सांकल लगने के बाद दरवाज़े कहाँ खुलते हैं भला...
~सादर!!!
Gahre tak bhedti Sundar rachna..
जवाब देंहटाएंसशक्त भावाभिव्यक्ति। बेहतरीन रचना
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर सार्थक भाव , प्रभावकारी रचना ..बधाई
जवाब देंहटाएंबेहद भापूर्ण, बधाई.
जवाब देंहटाएंसार्थक , बेबाक अभिव्यक्ति
जवाब देंहटाएंजहरीली हवाओं से कहीं
जवाब देंहटाएंबुझ ना जाए
आशाओं की डिभरी
चढ़ी है भावनाओं की सांकल
दरवाजे इसीलिए नहीं खुले हैं
बहुत सुन्दर !
(नवम्बर 18 से नागपुर प्रवास में था , अत: ब्लॉग पर पहुँच नहीं पाया ! कोशिश करूँगा अब अधिक से अधिक ब्लॉग पर पहुंचूं और काव्य-सुधा का पान करूँ | )
नई पोस्ट तुम
बहुत खूबसूरत प्रस्तुति..आभार..
जवाब देंहटाएंबहुत ही शानदार व गूढ़ लेखन , आदरणीय धन्यवाद
जवाब देंहटाएंनया प्रकाशन --: तेरा साथ हो, फिरकैसी तनहाई
॥ जै श्री हरि: ॥
सटीक ... काश के ये पीली कुर्ते हिते ही नहीं ... भावनाएं तो वैसे ही मरी हुई हैं ...
जवाब देंहटाएंअच्छी कविता है ..पर ये किसके लिए लिखी है, सिर्फ कवियों, पढ़े लिखों के लिए ...क्योंकि सामान्य जन ये व्यंजनायें समझेगा नहीं और नेता समझते ही नहीं...
जवाब देंहटाएं---क्लिष्ट व दूरस्थ भावों से बचना चाहिए ...
namste chachaji .......bahut sundar
जवाब देंहटाएंसुन्दर रचना।। आभार।।
जवाब देंहटाएंनई चिट्ठियाँ : ओम जय जगदीश हरे…… के रचयिता थे पंडित श्रद्धा राम फिल्लौरी
नया ब्लॉग - संगणक
काश ये बात वो समझ सकें जिनके लिए ये लिखी गई है।
जवाब देंहटाएंहमें मालूम है
जवाब देंहटाएंकलफ किए तुम्हारे
सफ़ेद पीले कुर्ते
गंदे पानी से धुले हैं------
....बहुत सुन्दर और सटीक...
सुंदर रचना...
जवाब देंहटाएंउजाले के पार्श्व में जो रौशनी आपने इस कविता के माध्यम से दिखाई है वो बहुत प्रशंशनीय है. ह्रदय में उतरती पंक्तियाँ.
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर प्रस्तुति...!
जवाब देंहटाएं--
आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा आज बुधवार (04-12-2013) को कर लो पुनर्विचार, पुलिस नित मुंह की खाये- चर्चा मंच 1451
पर भी है!
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सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
bahut hi sunder
जवाब देंहटाएंआपकी बेहतरीन रचना से गुजरना अच्छा लगा,बधाई.
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