समर्थक परजीवी हो रहें हैं
सड़क पर कोलाहल बो रहें हैं----
जश्न में डूबा समय अब मौन है
थैलियां आश्वासन की खो रहें हैं----
चौखटों के पांव पड़ते थक गऐ
भदरंगे बेहरूपिये सो रहें हैं----
घाट पर धुलने गई है व्यवस्था
आँख से बलात्कार हो रहें हैं----
"ज्योति खरे"
सुन्दर ग़ज़ल...
जवाब देंहटाएंसमसामयिक गजल…
जवाब देंहटाएंबहुत बढ़ियाँ...
मौजूदा समय पर कटाक्ष करते हुए कविता... बहुत सुंदर....
जवाब देंहटाएंबढ़िया है आदरणीय-
जवाब देंहटाएंआभार आपका-
बहुत बढ़िया है।
जवाब देंहटाएंआ० बहुत ही सुंदर कृति व प्रस्तुति , धन्यवाद
जवाब देंहटाएंवाह ! बहुत खूब सुंदर गजल,भावपूर्ण पंक्तियाँ ...!
जवाब देंहटाएं=======================
RECENT POST -: हम पंछी थे एक डाल के.
बहुत सुंदर !
जवाब देंहटाएंबहुत बढिया..आभार
जवाब देंहटाएंकल 22/12/2013 को आपकी पोस्ट का लिंक होगा http://nayi-purani-halchal.blogspot.in पर
जवाब देंहटाएंधन्यवाद!
बहुत बढ़िया सामयिक रचना !
जवाब देंहटाएंनई पोस्ट चाँदनी रात
नई पोस्ट मेरे सपनों का रामराज्य ( भाग २ )
बहुत बढिया......
जवाब देंहटाएंबहुत खूब ... गहरा आक्रोश छलक रहा है ... व्यवस्था के प्रति सटीक टीका ...
जवाब देंहटाएंआभार आपका
हटाएंघाट पर धुलने गई है व्यवस्था
जवाब देंहटाएंआँख से बलात्कार हो रहें हैं----
sundar prastuti.
आभार आपका
हटाएंkaya baat hai sir ji behroopiye so rahe ...... choukhato ke paon thak gaye........ umda sher va behatreen gajal
जवाब देंहटाएंआभार आपका
जवाब देंहटाएंआभार आपका
जवाब देंहटाएंBahut sundar abhivykti .......
जवाब देंहटाएंआपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज मंगलवार 20 जुलाई 2021 शाम 5.00 बजे साझा की गई है.... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
जवाब देंहटाएंचौखटों के पांव पड़ते थक गऐ
जवाब देंहटाएंभदरंगे बेहरूपिये सो रहें हैं----ओह...गहरा कटाक्ष और गहरा लेखन।
आंख से बलात्कार हो रहे हैं ....उफ़्फ़ क्या लिखा है ।
जवाब देंहटाएंसमर्थक परजीवी हो रहें हैं
जवाब देंहटाएंसड़क पर कोलाहल बो रहें हैं----
शिकायतें द्वार पर टांग कर
हस्ताक्षर सलीके से रो रहें हैं----
बहुत बढ़िया अदरनीय सर 👌🙏🙏💐🌷
घाट पर धुलने गई है व्यवस्था
जवाब देंहटाएंआँख से बलात्कार हो रहें हैं----
एकदम सटीक...
बहुत ही सारगर्भित लाजवाब सृजन।
चौखटों के पांव पड़ते थक गऐ
जवाब देंहटाएंभदरंगे बेहरूपिये सो रहें हैं----
घाट पर धुलने गई है व्यवस्था
आँख से बलात्कार हो रहें हैं----यथार्थवादी सृजन। बहुत सटीक अभिव्यक्ति 💐
यथार्थ चित्रण,मार्मिक अभिव्यक्ति सर,सादर नमन
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