जेठ मास में--------
तपती गरमी जेठ मास में-----
प्यास प्यार की लगी हुई
होंठ मांगते पीना
सरकी चुनरी ने पोंछा
बहता हुआ पसीना
रूप सांवला हवा छू रही
बेला महकी जेठ मास में-----
बोली अनबोली आंखें
पता मांगती घर का
लिखा धूप में उंगली से
ह्रदय देर तक धड़का
कोलतार की सड़कों पर
राहें पिघली जेठ मास में-----
स्मृतियों के उजले वादे
सुबह-सुबह ही आते
भरे जलाशय शाम तलक
मन के सूखे जाते
आशाओं के बाग़ खिले जब
यादें टपकी जेठ मास में-----
"ज्योति खरे"
जेठ मॉस के इस खेल को हर साल भोगते हैं सब ... बहुत सुन्दरता से आपने इसकी कई खूबियों को संवेदना पूर्ण उतारा है इन पंक्तियों में ...
जवाब देंहटाएंIs kavita ne jeath maas ko bhi bahaar se bhar diya, ati uttam!
जवाब देंहटाएंनयी पुरानी हलचल का प्रयास है कि इस सुंदर रचना को अधिक से अधिक लोग पढ़ें...
जवाब देंहटाएंजिससे रचना का संदेश सभी तक पहुंचे... इसी लिये आप की ये खूबसूरत रचना दिनांक 05/06/2014 को नयी पुरानी हलचल पर लिंक की जा रही है...हलचल में आप भी सादर आमंत्रित है...
[चर्चाकार का नैतिक करतव्य है कि किसी की रचना लिंक करने से पूर्व वह उस रचना के रचनाकार को इस की सूचना अवश्य दे...]
सादर...
चर्चाकार कुलदीप ठाकुर
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उत्कृष्ट प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंसुंदर अभिव्यक्ति, जेठ मास में...
जवाब देंहटाएंबहुत ही सुंदर सार्थक प्रस्तुति!!!
जवाब देंहटाएंजेठ की गर्मी भी जरुरी है आम, खरबूजा आदि फल तेज गर्मी में ही पकते हैं, मिठास से भर जाते हैं
जवाब देंहटाएंबहुत बढ़िया
बेहद सामयिक खूबसूरत रचना...
जवाब देंहटाएंज्योति जी आपके ब्लॉग पर आना बहुत अच्छा लगा | अब आना होता रहेगा
जवाब देंहटाएंज्योति जी आपके ब्लॉग पर आना बहुत अच्छा लगा | अब आना होता रहेगा
जवाब देंहटाएंKhoobsoorat shringarik bhavabhivyakti
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