जंगली जड़ी बूटियों पर
डाका पड़ने के बाद
जम गई है
पेड़ों के घुटनों में
मवाद ---
सुबह से ही
सीमेंट की ऊंची टंकी पर बैठकर नहाता है दिनभर --
चांद
गिट्टियों की शक्ल में
पहाड़
कच्ची बस्तियों में ----
दब चुकी बस्ती में
कुछ नहीं बचा "ज्योति खरे"
चित्र
गूगल से साभार
आपकी लिखी रचना शनिवार 02 अगस्त 2014 को लिंक की जाएगी........
जवाब देंहटाएंhttp://nayi-purani-halchal.blogspot.in आप भी आइएगा ....धन्यवाद!
हक़ीकत बयाँ करती अभिव्यक्ति ....
जवाब देंहटाएंबेहतरीन प्रस्तुति...
जवाब देंहटाएंबहुत बढ़िया
जवाब देंहटाएंबहुत बढ़िया
जवाब देंहटाएंवाह बहुत खूब
जवाब देंहटाएंसुन्दर रचना..
जवाब देंहटाएंतनाव भरी चर्चाओं से बाहर आकर ऎसी रचनाएँ सुकून देती हैं. वही मुझे अभी-अभी मिला है.
जवाब देंहटाएंRecent Post …..विषम परिस्थितियों में छाप छोड़ता लेखन -- कविता रावत :)
हम पर्यावरण को कितनी क्षति पहुंचा रहे हैं, यह खिस खूबसूरती से बता रही है यह कविता। बहुत सुंदर।
जवाब देंहटाएंबहुत ही संवेदनशील ...
जवाब देंहटाएंइंसान समय रहते कुछ सोच नहीं पाता ... जब प्राकृति अपना काम करती है तो सब दोष सामने आने लगते हैं ...
प्रकृति के दर्द को आपने बखूबी बयां किया है।
जवाब देंहटाएंमर्मस्पर्शी...!
कडवी सच्चाई की खुबसूरत अभिव्यक्ति .... उम्दा रचना
जवाब देंहटाएंउत्कृष्ट अभिव्यक्ति
जवाब देंहटाएंगिट्टियों की शक्ल में
जवाब देंहटाएंबिक रहें पहाड़ों की कराह
नहीं सुनी किसी ने
टूट कर गिर रहें हैं
पहाड़
कच्ची बस्तियों में ----
...बहुत खूब...दिल को छूते अहसास...बहुत सटीक और सुन्दर अभिव्यक्ति...
मर्मस्पर्शी .... मौन को स्वर देती सशक्त अभिव्यक्ति
जवाब देंहटाएंkya baat! waah!
जवाब देंहटाएंवाह ।
जवाब देंहटाएंमर्म स्पर्शी रचना सच में पृथवी का दोहन यही कुछ दिखाएगा
जवाब देंहटाएंमार्मिक अभिव्यक्ति !! आभार आपका
जवाब देंहटाएंmarm ko chuti rachna...
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