मंगलवार, सितंबर 02, 2014

भीतर ही भीतर -------

घर
घर के भीतर घर
कुछ कच्चे, कुछ पक्के
 
रिश्ते
रिश्तों के भीतर रिश्ते
कुछ मीठे, कुछ खट्टे
 
आंखें
आंखों के भीतर आंखें
कुछ धंसी हुई, कुछ नम
 
सपने
सपनों के भीतर सपने
कुछ अपने, कुछ पराये
 
भूख
भूख के भीतर भूख
कुछ रोटी की, कुछ पाने की
 
प्यास
प्यास के भीतर प्यास
कुछ पीने की,कुछ आस की
 
दुःख
दुःख के भीतर दुःख
कुछ खुरदुरे पहाड़ों सा
कुछ गठरी में बंधा मैले कपड़ों सा
 
सुख
सुख के भीतर सुख
संकरे तालाबों सा
कुछ लबालब,कुछ उथला सा
 
प्यार
प्यार के भीतर प्यार
कुछ चुन्नी सा सरकता
कुछ आँचल से लिपटता
 
जीवन
जीवन के भीतर जीवन
इसके भीतर ही भीतर है
बेहतर जीवन
कुछ छोटा सा,कुछ लम्बा सा ----

                               "ज्योति खरे"
चित्र-गूगल से साभार

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