अनजाने ही मिले अचानक
एक दोपहरी जेठ मास में
खड़े रहे हम बरगद नीचे
तपती गरमी जेठ मास में-
प्यास प्यार की लगी हुयी
होंठ मांगते पीना
सरकी चुनरी ने पोंछा
बहता हुआ पसीना
रूप सांवला हवा छू रही
बेला महकी जेठ मास में--
बोली अनबोली आंखें
पता मांगती घर का
लिखा धूप में उंगली से
ह्रदय देर तक धड़का
कोलतार की सड़कों पर
राहें पिघली जेठ मास में---
स्मृतियों के उजले वादे
सुबह-सुबह ही आते
भरे जलाशय शाम तलक
मन के सूखे जाते
आशाओं के बाग खिले जब
यादें टपकी जेठ मास में-----
"ज्योति खरे"
वाह बहुत सुन्दर।
जवाब देंहटाएंब्लॉग बुलेटिन की दिनांक 26/05/2019 की बुलेटिन, " लिपस्टिक के दाग - ब्लॉग बुलेटिन “ , में आप की पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !
जवाब देंहटाएंबोली अनबोली आंखें
जवाब देंहटाएंपता मांगती घर का
लिखा धूप में उंगली से
ह्रदय देर तक धड़का...वाह ! बहुत सुन्दर
सादर
प्यास प्यार की लगी हुयी
जवाब देंहटाएंहोंठ मांगते पीना
सरकी चुनरी ने पोंछा
बहता हुआ पसीना
बहुत सुंदर ..... सादर नमस्कार सर
बहुत खूब....., सादर नमस्कार
जवाब देंहटाएंआपकी लिखी रचना "साप्ताहिक मुखरित मौन में" शनिवार 1 जून 2019 को साझा की गई है......... "साप्ताहिक मुखरित मौन" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
जवाब देंहटाएंवाह बेहतरीन रचना
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