सोमवार, जुलाई 01, 2019

दाई से क्या पेट छुपाना


रुंधे कंठ से फूट रहें हैं
अब भी
भुतहे भाव भजन--

शिवलिंग,नंदी,नाग पुराना
किंतु झांझ,मंजीरे,ढोलक
चिमटे नये,नया हरबाना
रक्षा सूत्र का तानाबाना

भूखी भक्ति,आस्था अंधी
संस्कार का
रोगी तन मन---

गंग,जमुन,नर्मदा धार में
मावस पूनम खूब नहाय
कितने पुण्य बटोरे
कितने पाप बहाय

कितनी चुनरी,धागे बांधे
अब तक
भरा नहीं दामन---

जीवन बचा हुआ है अभी
एक विकल्प आजमायें
भू का करें बिछावन
नभ को चादर सा ओढें
और सुख से सो जायें

दाई से क्या पेट छुपाना
जब हर
सच है निरावरण-------

"ज्योति खरे"

10 टिप्‍पणियां:

  1. पेट खुले रखने का चलन हो गया है दाई की जरूरत कहाँ है :)

    वाह बहुत खूब।

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  2. सत्य को छिपाने की आवश्यकता भी नहीं पडती...सुंदर अभिव्यक्ति...

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  3. आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल बुधवार (03-07-2019) को "मेघ मल्हार" (चर्चा अंक- 3385) पर भी होगी।
    --
    सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
    --
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

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  4. जी नमस्ते,
    आपकी लिखी रचना 3 जुलाई 2019 के लिए साझा की गयी है
    पांच लिंकों का आनंद पर...
    आप भी सादर आमंत्रित हैं...धन्यवाद।

    जवाब देंहटाएं
  5. जीवन बचा हुआ है अभी
    एक विकल्प आजमायें
    भू का करें बिछावन
    नभ को चादर सा ओढें
    और सुख से सो जायें
    दाई से क्या पेट छुपाना
    जब हर
    सच है निरावरण-------
    वाह!!!
    क्या बात...!!!
    बहुत लाजवाब...

    जवाब देंहटाएं