बुधवार, अक्तूबर 09, 2019

रावण जला आये बंधु

रावण जला आये बंधु
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कागज
लकड़ी
जूट और मिट्टी से बना
नकली रावण
जला आये बंधु !

जो लोग
सहेजकर सुरक्षित रखे हैं
शातिरानापन
गोटीबाजी
दोगलापन
इसे जलाना भूल गये बंधु !

कल से फिर
पैदा होने लगेंगे
और और रावण बंधु !

जलाना था कुछ
जला आये और कुछ
जीवित रह गया रावण

अब लड़ते रहना
जब तक
भीड़ भरे मैदान में
स्वयं न जल जाओ बंधु !

"ज्योति खरे"

10 टिप्‍पणियां:

  1. अब लड़ते रहना
    जब तक
    भीड़ भरे मैदान में
    स्वयं न जल जाओ बंधु

    बिलकुल सही कहा आपने
    बहुत ही सुंदर रचना ,सादर नमन

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  2. अगले साल के लिये थोड़ा सा ही तो बचा के आये बंधू ।
    लाजवाब

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  3. आपकी इस प्रस्तुति का लिंक 10.10.19 को चर्चा मंच पर चर्चा -3484 में दिया जाएगा

    धन्यवाद

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  4. आपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" में गुरुवार 10 अक्टूबर 2019 को साझा की गयी है......... पाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

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  5. यथार्थ को इंगित करती हुई मानव के दोहरे मानदंडों को बहुत ही गंभीरता से सार्थक शब्दों से सजाया है आदरणीय ज्योति सर बेहतरीन प्रस्तुति हेतु बधाई एवं शुभकामनाएँ |
    सादर प्रणाम सर

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  6. जलाना था कुछ
    जला आये और कुछ
    जीवित रह गया रावण.. बहुत सुंदर और सार्थक प्रस्तुति

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  7. एकदम सही बात। जबतक अपने अंदर की बुराइयों को दूर नहीं करेंगे रावण के पुतले जलाने से कोई लाभ नहीं होनेवाला है।

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  8. आज बुराई पर अच्छाई की विजय निश्चित करने के लिए किसीको उसके गुणों का आकलन कर के नहीं बल्कि उसकी हैसियत देख कर चुना जाता है ! ऐसे में तो रावण मरने से रहा

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  9. जो लोग
    सहेजकर सुरक्षित रखे हैं
    शातिरानापन
    गोटीबाजी
    दोगलापन
    इसे जलाना भूल गये बंधु !
    बहुत सटीक सार्थक एवं सुन्दर रचना
    वाह!!!!

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