सिगड़ी में रखी चाय
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गली की
आखिरी मोड़ वाली पुलिया पर बैठकर
बहुत इंतजार किया
तुम नहीं आयीं
यहां तक तो ठीक था
पर तुम घर से निकली भी नहीं ?
मानता हूं
प्रेम दुनियां का सबसे
कठिन काम है
तुम अपने आलीशान मकान में
बैठी रही
मैं मुफ्त ही
अपनी टपरिया बैठे बैठे
बदनाम हो गया
बर्फीला आसमान
उतर रहा है छत पर
सोच रहा ह़ू
कि आयेंगे मेरे लंगोटिया यार
पूछने हालचाल
रख दी है
सिगड़ी पर
गुड़,सौंठ,तुलसी की चाय उबलने
यारों के ख्याल में ही डूबा रहा
हक़ के आंदोलन के लिए
लड़ने वाले
ईमानदार लड़ाकों को
भेज दिया गया है
हवालात में
जमानत लेने में
बह गया पसीना
सिगड़ी में रखी चाय
उफन कर बह रही है----
"ज्योति खरे"
वाह लाजवाब
जवाब देंहटाएंआभार आपका
हटाएंआपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज मंगलवार 14 जनवरी 2020 को साझा की गई है...... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
जवाब देंहटाएंअति सुंदर.... सर ,सादर नमस्कार
जवाब देंहटाएंआभार आपका
हटाएंआपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल बुधवार (15-01-2020) को "मैं भारत हूँ" (चर्चा अंक - 3581) पर भी होगी।
जवाब देंहटाएं--
सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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मकर संक्रान्ति की
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
आपकी लिखी रचना "पांच लिंकों का आनन्द में" बुधवार 15 जनवरी 2020 को लिंक की जाएगी ....
जवाब देंहटाएंhttp://halchalwith5links.blogspot.in पर आप भी आइएगा ... धन्यवाद!
वाह्ह्ह!!! वाकई, मैं अभी लाजवाब हो गया हूँ। आपने इस रचना के माध्यम से मेरे जीवन के कई क्षणों को समेट लिया है...
जवाब देंहटाएंआपकी इस बेहतरीन सृजन की जितनी भी तारीफ करें कम है। शुभकामनाएं स्वीकार करें ।
जवाब देंहटाएंआभार आपका
हटाएंरख दी हैसिगड़ी पर
जवाब देंहटाएंगुड़,सौंठ,तुलसी की चाय उबलने
यारों के ख्याल में ही डूबा रहाहक़ के आंदोलन के लिए
लड़ने वाले
ईमानदार लड़ाकों को
भेज दिया गया है
हवालात में
जमानत लेने में
बह गया पसीना,
अब क्या कहूँ आदरणीय ज्योति जी, निःशब्द हूँ! आपने जिस सुंदरता से शब्दों के माध्यम से भावनाओं का आरेख खींच दिया है उसकी प्रशंसा जीतनी भी करूँ कम होगी ! कुछ पंक्तियाँ जो मुझे बेहद पसंद आईं वह ऊपर उद्धृत कर दिया है। सादर 'एकलव्य'
आभार आपका
हटाएंबहुत सुंदर और सार्थक सृजन आदरणीय।
जवाब देंहटाएंशुरुआत से अंत तक दृश्य बदलते से पर विकल मन का सुंदर अहसास लिए सुंदर रचना।
आभार आपका
हटाएंवाह बेहतरीन रचना आदरणीय
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