गुरुवार, जनवरी 16, 2020

गुस्सा हैं अम्मा

गुस्सा हैं अम्मा
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नहीं जलाया कंडे का अलाव
नहीं बनाया गक्कड़ भरता
नहीं बनाये मैथी के लड्डू
नहीं बनाई गुड़ की पट्टी
अम्मा ने इस बार--

कड़कड़ाती ठंड में भी
नहीं रखी खटिया के पास
आगी की गुरसी

नहीं गाये
रजाई में दुबककर
खनकदार हंसी के साथ
लोकगीत
नहीं जा रही जल चढाने
खेरमाई
नहीं पढ़ रही
रामचरित मानस--

जब कभी गुस्सा होती थी अम्मा
झिड़क देती थीं पिताजी को
ठीक उसी तरह
झिड़क रहीं हैं मुझे

मोतियाबिंद वाली आंखों से
टपकते पानी के बावजूद
बस पढ़ रहीं हैं प्रतिदिन
घंटों अखबार

दिनभर बड़बड़ाती हैं
अलाव जैसा जल रहा है जीवन
भरते के भटे जैसी
भुंज रही है अस्मिता
जमीन की सतहों से
उठ रही लहरों पर
लिखी जा रही हैं संवेदनायें
घर घर मातम है
सड़कों पर
हाहाकार पसरा पड़ा है

रोते हुये गुस्से में
कह रहीं हैं अम्मा
यह मेरी त्रासदी है
कि
मैने पुरुष को जन्म दिया
और वह तानाशाह बन गया--

नहीं खाऊँगी
तुम्हारे हाथ से दवाई
नहीं पियूंगी
तुम्हारे हाथ का पानी
तुम मर गये हो
मेरे लिये
इस बार
हर बार---------

"ज्योति खरे"

21 टिप्‍पणियां:

  1. आपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज गुरुवार शुक्रवार 17 2020 को साझा की गई है...... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

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  2. मार्मिक रचना। कोई माता ऐसा कहने को विवश हो तो पुत्र को पुत्र कहलाने का हक नहीं । गंभीर विषय।
    शुभकामनाएँ आदरणीय ।

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  3. उफ़, दहलाने वाला सृजन एक सिहरन दे गया।
    निशब्द।

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  4. जी नमस्ते,
    आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा रविवार (१९-०१ -२०२०) को "लोकगीत" (चर्चा अंक -३५८५) पर भी होगी।
    चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट अक्सर नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
    जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
    आप भी सादर आमंत्रित है
    ….
    -अनीता सैनी

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  5. वाह ! हृदयस्पर्शी रचना ,सर आपकी रचनाएँ भावुक कर जाती हैं ,सादर नमन आपको

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  6. वाह बेहद हृदयस्पर्शी रचना

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  7. मर्मस्पर्शी और सटीक सृजन ।

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  8. जी नमस्ते , आपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" में मंगलवार 24 मार्च 2020 को साझा की गयी है......... पाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

    ......
    सादर
    रेणु

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  9. वाह!आदरणीय ,क्या खूब लिखते हैं आप🙏फेसबुक पर पढी थी ....। आपकी रचना कितनी ही बार पढों ,अच्छी लगती है ।

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  10. अखबारों में ये घटनाएं क्यों आम हो गयी है
    जिससे नारी जाति को पुरुष समाज पर घिन आने लगे।
    हम सच में शर्मसार हो रहे हैं और कर रहे हैं घर बैठी बुढ़िया को, जवान को, बच्ची को।
    उम्दा रचना श्रीमान।

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  11. सच में, इस तरह की घटनाएँ होने लगी हैं कि स्त्री बेटी पैदा करने से भी डरने लगी है और बेटा पैदा करने से भी।
    आपने एकदम अलग रूपक रचकर स्त्री जाति की वेदना को शब्द दिए हैं।
    सादर प्रणाम।

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  12. वाह!!!!
    बहुत ही लाजवाब सृजन।

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