बसंत तुम लौट आये
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अच्छा हुआ
इस सर्दीले वातावरण में
तुम लौट आये हो
सुधरने लगी है
बर्फीले प्रेम की तासीर
जमने लगी है
मौसम की नंगी देह पर
कुनकुनाहट
लम्बे अंतराल के बाद
सांकल के भीतर से
आने लगी हैं
खुसुर-फुसुर की आवाजें
सांसों की सनसनाहट से
खिसकने लगी है रजाई
धूप
दिनभर इतराती
चबा चबा कर
खाने लगी है
गुड़ की लैय्या
औऱ आटे के लड्डू
वाह!! बसंत
कितने अच्छे हो तुम
जब भी आते हो
प्रेम में सुगंध भरकर चले जाते हो---
" ज्योति खरे "
आपकी इस प्रस्तुति का लिंक 23.01.2020 को चर्चा मंच पर चर्चा - 3589 में दिया जाएगा । आपकी उपस्थिति मंच की शोभा बढ़ाएगी ।
जवाब देंहटाएंधन्यवाद
दिलबागसिंह विर्क
आभार आपका
हटाएंबहुत सुन्दर...
जवाब देंहटाएंआभार आपका
हटाएंलाजवाब
जवाब देंहटाएंआभार आपका
हटाएंनमस्ते,
जवाब देंहटाएंआपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" में गुरुवार 23 जनवरी 2020 को साझा की गयी है......... पाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
आभार आपका
हटाएंबहुत सुंदर रचना सर।
जवाब देंहटाएंआभार आपका
हटाएंसुंदर रचना
जवाब देंहटाएंआभार आपका
हटाएंबहुत प्यारी रचना, बधाई आपको.
जवाब देंहटाएंआभार आपका
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जवाब देंहटाएंआभार आपका
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