हरे-भरे सपने
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आम आदमी के कान में
फुसफुसाती आवाजें
निकल जाती हैं
यह कहते हुए
कि,
टुकड़े टुकड़े जमीन पर
सपनें मत उगाओ
जानते हो
कबूतरों को
सिखाकर उड़ाया जाता है
लाल पत्थरों के महल से
जाओ
आम आदमी के
सुखद एहसासों को
कुतर डालो
उनकी खपरीली छतों पर बैठकर
टट्टी करो
कुतर डालो सपनों को
सपने तो सपने होते हैं
आपस में लड़ते समय
जमीन पर गिरकर
टुकड़े टुकड़े हो जाते हैं
काले समय के इस दौर में
सपनों को ऊगने
भुरभुरी जमीन चाहिए
तभी तो सपनें
हरे-भरे लहरायेंगे---
"ज्योति खरे"
वाह लाजवाब
जवाब देंहटाएंआभार आपका
हटाएंकाले समय के इस दौर में
जवाब देंहटाएंसपनों को ऊगने
भुरभुरी जमीन चाहिए
तभी तो सपनें
हरे-भरे लहरायेंगे
बहुत खूब सर सादर नमन आपको
आभार आपका
हटाएंएक भिन्न प्रकार की रचना। बढ़िया 👌👌
जवाब देंहटाएंआभार आपका
हटाएंबिलकुल सही, सादर
जवाब देंहटाएंआभार आपका
हटाएंज़बरदस्त।
जवाब देंहटाएंये कबूतर आजकल योजनाएं कहलाती हैं।
जो महसूस तो बोझ रहित होती है लेकिन समाज पर भारी पड़ती है।
मेरी कविता भी आपकी नज़र
कृपया जरूर आईयेगा - लोकतंत्र