ईट भट्टोंँ में
काम करने वाली स्त्रियां
चाहती हैं
कि, उनका भी
अपना घर हो
खेतों पर
भूखे रहकर
अनाज ऊगाने वाली स्त्रियां
चाहती हैं
कि, उनका भी
और उनके बच्चों का
भरा रहे पेट
मजबूर और गरीब स्त्रियां
चाहती हैं
कि, उनकी फटी साड़ी मेँ
न लगे थिगड़ा
सज संवर कर
घूम सकें बाजार हाट
यातनाओं से गुजर रही स्त्रियां
चाहती हैं
कि , कोई
उलझनों की
खोल दे कोई गठान
ताकि उड़ सकें
कामनाओं के आसमान में
बिना किसी भय के
ऐसी स्त्रियां चाहती हैं
देश दुनियां में
केवल सुख भोगती स्त्रियों का
जिक्र न हो
जिक्र हो
उपेक्षा के दौर से गुजर रहीं स्त्रियों का
रोज न सही
महिला दिवस के दिन तो
होना चाहिए---
बहुत सुन्दर प्रस्तुति।
जवाब देंहटाएं--
होलीकोत्सव के साथ
अन्तर्राष्ट्रीय महिला दिवस की भी बधाई हो।
हाँ कम से कम एक दिन तो मजबूरी से ही सही जरूरी होना ही चाहिये। हमेशा की तरह लाजवाब।
जवाब देंहटाएंआभार आपका
हटाएंआपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल सोमवार (09-03-2020) को महके है मन में फुहार! (चर्चा अंक 3635) पर भी होगी।
जवाब देंहटाएं--
सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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होलीकोत्सव कीहार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
आभार आपका
हटाएंपुरुष प्रधान समाज ने स्त्रियों की क्या दशा कर रखी है ये किसी से छिपा नही है।
जवाब देंहटाएंसही कहा मजबूर, मेहनतकश, मजदूर स्त्रियों की दशा पर एक दिन तो नजर पड़े।
उम्दा।
नई पोस्ट - कविता २
आभार आपका
हटाएंपति नशे मे धुत हो
जवाब देंहटाएंपत्नी को पीटा करे
सहायिका मेरी रो रो कर
दुख अपना बयान करे,
सोचने पर मजबूर
किस वर्ग की नारी के
लिए महिला दिवस आये ।
लाजवाब
आभार आपका
हटाएंसुंदर चिंतन, नारी दिवस पर उपेक्षित नारी वर्ग की बात को प्रमुखता से उठाने हेतु साधुवाद ।
जवाब देंहटाएंआभार आपका
हटाएंबहुत सुन्दर आदरणीय
जवाब देंहटाएंसुंदर रचना सर
जवाब देंहटाएंसुंदर रचना सर
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