इंतजार है
तुम्हारे मोंगरे जैसे
खिले चेहरे को
करीब से देखूं
ईद मुबारक
कह दूं
पर तुम
शीरखोरमा
मीठी सिवैंईयां
बांटने में लगी हो
मालूम है
सबसे बाद में
मेरे घर आओगी
दिनभर की
थकान उतारोगी
बताओगी
किसने कितनी
ईदी दी
तुम
बिंदी नहीं लगाती हो
पर में
इस ईद में
तुम्हारे माथे पर
गुलाब की पंखुड़ी
लगाना चाहता हूं
मुझे नहीं मालूम
तुम इसे
प्रेम भरा
बोसा समझोगी
या गुलाब की सुगंध का
कोमल अहसास
या ईदी
अब जो भी हो
प्रेम को
जिंदा रखना है
अपन दोनों को
"ज्योति खरे"
सार्थक सन्देश।
जवाब देंहटाएंईद मुबारक।
आभार आपका
हटाएंवाह लाजवाब
जवाब देंहटाएंआभार आपका
हटाएंआपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज सोमवार 25 मई 2020 को साझा की गई है.... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
जवाब देंहटाएंआभार आपका
हटाएंसादर नमस्कार ,
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल मंगलवार (26 -5 -2020 ) को "कहो मुबारक ईद" (चर्चा अंक 3713) पर भी होगी,
आप भी सादर आमंत्रित हैं।
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कामिनी सिन्हा
यह साईट खुल ही नहीं रही
हटाएंबहुत सुंदर
जवाब देंहटाएंआभार आपका
हटाएंअब जो भी हो ......वाह! मन को छू गयी, मन की बात!
जवाब देंहटाएंआभार आपका
हटाएंकोमल अहसास से बुनी रचना
जवाब देंहटाएंआभार आपका
हटाएंएक मासूम, कोमल सी चाहत
जवाब देंहटाएंआभार आपका
हटाएंआभार आपका
हटाएंलाजवाब सृजन।
जवाब देंहटाएंमासूम से नाज़ुक प्रेम को संभालना आसान कहाँ होता है ... पंखुरी सा हल्का जो होता है ...
जवाब देंहटाएंखूबसूरत सृजन ...
आभार आपका
हटाएंआभार आपका
जवाब देंहटाएंवाह! बहुत ही खूबसूरत सृजन आदरणीय सर.
जवाब देंहटाएंसादर