निकले थे
गमछे में
कुछ जरूरी सामान बांधकर
कि, रास्ते में चलते समय
जब बहुत हताश
और भूख से बेहाल हो जायेंगे
तो किसी
पुराने पेड़ के नीचे बैठकर
भीख में मिली
सूखी रोटियों को
पानी के साथ खायेंगे
पेड़ की छांव की बैठकर
दर्द से टूट रही
हड्डियों को सेकेंगे
सोचा हुआ
कहां हो पाता है पूरा
सच तो यह है कि
घर से निकलने
और लौटने का रास्ता
दो सामानंतर रेखाओं से
होकर जाता है
एक पर पांव होते हैं
और दूसरी पर सिर
हादसों के चके
सिर और पांव को
कुचल देते हैं
धड़
दो रेखाओं के बीच
निर्जीव पड़ा रहता है
घर में तो केवल
गमछे में बंधा
कुछ सामान पहुंचता है---
"ज्योति खरे"
घरों को लौटते थके-हारे मजदूरों के साथ हुए दारुण हादसे पर व्यथापूर्ण अभिव्यक्ति । मर्मस्पर्शी सृजन ।
जवाब देंहटाएंदुखद घटना का मार्मिक चित्रण।
जवाब देंहटाएंबेहद मार्मिक रचना.
जवाब देंहटाएंमार्मिक और दुखद
जवाब देंहटाएंमार्मिक
जवाब देंहटाएंजी नमस्ते,
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा शनिवार(१६-०५-२०२०) को 'विडंबना' (चर्चा अंक-३७०३) पर भी होगी
चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट अक्सर नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का
महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
आप भी सादर आमंत्रित है
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अनीता सैनी
मार्मिक चित्रण
जवाब देंहटाएंबहुत ही मार्मिक...
जवाब देंहटाएंमर्मस्पर्शी सृजन ,सादर नमन आपको
जवाब देंहटाएंThe article is very easy to understand, detailed and meticulous! Also visit Inspirational Struggle Story in Hindi!
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