दौर पतझड़ का सही, उम्मीद तो हरी है
अपनों का अपनापन मिले तो क्यों न मन चमके, इतराये, लहराए बहुत सुन्दर
वाह
सादर नमस्कार ,आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल मंगलवार (25 -8 -2020 ) को "उगने लगे बबूल" (चर्चा अंक-3804) पर भी होगी,आप भी सादर आमंत्रित हैं।---कामिनी सिन्हा
सुन्दर और सार्थक।
वाह!बहुत खूब ज्योति जी ।
बहुत सुंदर।
अपनों का अपनापन मिले तो क्यों न मन चमके, इतराये, लहराए
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर
वाह
जवाब देंहटाएंसादर नमस्कार ,
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल मंगलवार (25 -8 -2020 ) को "उगने लगे बबूल" (चर्चा अंक-3804) पर भी होगी,आप भी सादर आमंत्रित हैं।
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कामिनी सिन्हा
सुन्दर और सार्थक।
जवाब देंहटाएंवाह!बहुत खूब ज्योति जी ।
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर।
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