कैसी हो मेरी "अपना"
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बहुत बरस तक
अक्सर मिलते थे
बगीचे में
बैठकर छूते थे
एक दूसरे की कल्पनाएं
टटोलते थे एक दूसरे के दिलों में बसा प्रेम
आज भी उस बगीचे में जाकर बैठता हूं
मुठ्ठियों में भरकर
चूमता हूं यादों को
सोचता हूँ
जब तुम
हरसिंगार के पेड़ के नीचे से
गुजकर आती थीं
औऱ बैठ जाती थी
चीप के टुकड़े पर
मैँ भी बैठ जाता था तुम्हारे करीब
निकालता था फंसे हुए हरसिंगार के फूल
तुम्हारे बालों से
इस बहाने
छू लेता था तुम्हें
डूब जाता था
तुम्हारी आंखों के
मीठे पानी में
अब तुम दूर हो
बदल गयी हैं
भीतर की बेचैनियां
पहले मिलने की होती थी
अब यादों में होती हैं
भागती हुई यादों से
कहता हूं रुको
मेरी "अपना"
आती होगी
उसके बालों में फंसे
हरसिंगार के फूल निकालना हैं
जिन्हें मैँ जतन से
सहेजकर रखता हूँ
तुम अब नहीं ही मेरे पास
फिर भी
मेरे पास हो
तुम्हारे होने का अहसास
थोड़े से लम्हों के लिए ही सही
प्रेम को जिंदा रखने का
सलीका तो सिखाता है
कैसी हो मेरी "अपना"
"ज्योति खरे"
बहुत सुंदर रचना
जवाब देंहटाएंआभार आपका
हटाएंनमस्ते,
जवाब देंहटाएंआपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" में गुरुवार 17 सितंबर 2020 को साझा की गयी है......... पाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
आभार आपका
हटाएंलाजवाब सृजन
जवाब देंहटाएंआभार आपका
हटाएंअद्भुत !
जवाब देंहटाएंआभार आपका
हटाएंबहुत ही सुंदर सृजन।
जवाब देंहटाएंसादर
आभार आपका
हटाएंआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शुक्रवार (18-09-2020) को "सबसे बड़े नेता हैं नरेंद्र मोदी" (चर्चा अंक-3828) पर भी होगी।
जवाब देंहटाएं--
चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
--
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ
सादर...!--
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
आभार आपका
हटाएंसुन्दर सृजन
जवाब देंहटाएं
जवाब देंहटाएंतुम अब नहीं ही मेरे पास
फिर भी
मेरे पास हो
तुम्हारे होने का अहसास
थोड़े से लम्हों के लिए ही सही
प्रेम को जिंदा रखने का
सलीका तो सिखाता है
लाज़बाब,बहुत सुंदर सृजन,सादर नमन सर
जब तुम
जवाब देंहटाएंहरसिंगार के पेड़ के नीचे से
गुजकर आती थीं
औऱ बैठ जाती थी .... क्या खूब लिखा है ज्योति जी , मन को छूने वाली हैं सभी पंक्तियां
तुम अब नहीं ही मेरे पास
जवाब देंहटाएंफिर भी
मेरे पास हो
तुम्हारे होने का अहसास
थोड़े से लम्हों के लिए ही सही
प्रेम को जिंदा रखने का
सलीका तो सिखाता है
कैसी हो मेरी "अपना"
बहुत ही हृदयस्पर्शी ...
लाजवाब सृजन।
आभार आपका
हटाएंबहुत ही सुंदर
जवाब देंहटाएंआभार आपका
हटाएंबहुत सुन्दर अभिव्यक्ति।
जवाब देंहटाएंबहुत ही सुन्दर लेख |
जवाब देंहटाएंHindi Vyakran Samas
वाह.. बहुत सुंदर अभिव्यक्ति
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